नई दिल्ली- शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को मिलने वालें 10 फीसदी आरक्षण के खिलाफ दायर सभी समीक्षा याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण के फैसले पर पुनर्विचार करने का कोई आधार नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई को यह आदेश पारित किया था, जिसकी एक प्रति मंगलवार को अदालत की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी (सेवानिवृत्त), न्यायमूर्ति एस रविन्द्र भट्ट, न्यायमूर्ति बेला. एम. त्रिवेदी, और न्यायमूर्ति जे. बी. पर्दीवाला की बैंच ने सुनवाई के दौरान दायर समीक्षा याचिकाओं पर कहा कि रिकॉर्ड में कोई त्रुटि स्पष्ट नहीं हैं और समीक्षा के लिए भी कोई मामला नजर नहीं आ रहा है, इसलिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण के फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग करने वाली सभी दायर याचिकाओं को खारिज किया जाता हैं।
आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट का एक नियम यह भी है कि पुनर्विचार याचिका पर वही पीठ विचार कर सकती है, जिसने फैसला सुनाया था। लेकिन इस मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित सेवानिवृत्त हो चुके है, इसलिए पुनर्विचार याचिकाओं के मामले में न्यायधीश यूयू ललित की जगह मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पीठ में शामिल हुए थे।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया था सही
आपको बता दे कि बीते साल 7 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ में न्यायधीश दिनेश महेश्वरी, न्यायधीश बेला एम. त्रिवेदी और न्यायधीश जेबी पार्डीवाला ने आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण को संवैधानिक प्रविधान 103वें संविधान संशोधन को सही ठहराया था, जबकि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायधीश एस. रविंद्र भट ने इस फैसले पर असहमति जताई थी।
जिसके बाद न्यायधीश दिनेश महेश्वरी ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को संविधान सम्मत घोषित करते हुए EWS आरक्षण को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने कहा था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देना और उस आरक्षण में एससी-एसटी और ओबीसी को बाहर रखने से संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं होता हैं।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.