नई दिल्ली: भारत सरकार ने संसद में जानकारी दी है कि देश के 26 प्रतिशत न्यायालय परिसरों में पृथक् महिला शौचालय ही नहीं है। इसके अलावा किसी उच्च न्यायालय की कोई महिला मुख्य न्यायमूर्ति नहीं है।
राज्यसभा में पूछे गए सवाल “क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि उच्च न्यायालयों के 25 मुख्य न्यायाधीशों में से केवल 1 ही महिला है ?” के जवाब में विधि और न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने कहा कि किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति के लिए प्रस्ताव का प्रारंभ भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा किया जाता है।
“उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायमूर्ति की नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 के अधीन की जाती है, जो किसी जाति या वर्ग के व्यक्तियों के लिए आरक्षण का कोई उपबंध नहीं करता है। वर्तमान में, किसी उच्च न्यायालय की कोई महिला मुख्य न्यायमूर्ति नहीं है।”
आगे उन्होंने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री ने न्यायिक अवसंरचना की प्रास्थिति का डाटा संकलित किया है जिससे प्रकट होता है कि 26% न्यायालय परिसरों में पृथक् महिला शौचालय नहीं है। न्यायपालिका के लिए अवसंरचनात्मक प्रसुविधाओं के विकास की मुख्य जिम्मेदारी राज्य सरकारों में निहित होती है।
“राज्य सरकारों के संसाधनों के संवर्धन के लिए संघ सरकार, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में अवसंरचनात्मक प्रसुविधा के विकास हेतु विहित किए गए निधि बंटवारा पेटर्न में राज्य सरकारों / संघ सरकारों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करके एक केंद्रीय रूप से प्रायोजित स्कीम का कार्यान्वयन कर रही है। यह स्कीम वर्ष 1993-94 से कार्यान्वित की जा रही है। केंद्रीय सरकार ने आज तक राज्य / संघ राज्यक्षेत्रों को इस स्कीम के अधीन 8709.77 करोड़ रुपए मंजूर किए हैं।”
“यह स्कीम समय – समय पर विस्तारित की गई है। इस स्कीम के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा जिला और अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायिक अधिकारियों के लिए आवासिक आवासों और न्यायालय भवनों के संनिर्माण के लिए निधियां जारी की गई हैं। सरकार ने 01.04.2021 से 31.03.2026 तक, 9000 करोड़ रुपए, जिसके अंतर्गत केंद्र का 5307 करोड़ रुपए का अंश भी है, के कुल बजटीय परिव्यय के साथ पांच वर्ष की और अवधि के लिए उपरोक्त स्कीम का विस्तार किया है।”
अंत में जोड़ा कि, “इस स्कीम के संघटकों का विस्तार शौचालयों, डिजिटल कम्प्यूटर कक्षों और जिला तथा अधीनस्थ न्यायालयों में वकीलों के हालों का सन्निर्माण को आविष्ट करने के लिए भी किया गया है और जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में परिसरों में शौचालयों के सन्निर्माण हेतु 47.00 करोड़ रुपए अनुमोदित किए गए हैं।”