नई दिल्ली: विदेशी मानवाधिकार संगठन ने भारत में अपना काम बंद कर दिया है।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में अपने कार्यों को रोक दिया है।सरकार का कहना है कि संग़ठन अवैध रूप से विदेशी धन प्राप्त कर रहे हैं और यह कभी भी विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं है। शीर्ष सरकारी अधिकारियों का कहना है कि विदेशी धन प्राप्त करने में कथित अनियमितताओं को लेकर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा एमनेस्टी की जांच की जा रही है।
गृह मंत्रालय के अनुसार, संगठन को “एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) मार्ग के माध्यम से भारत में पैसा मिला,” जो गैर-लाभ के मामले में अनुमति नहीं है। 2017 में ईडी ने उनके खातों को फ्रीज कर दिया, जिसके बाद एमनेस्टी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और जीत हासिल की। लेकिन उनके खाते सील कर दिए गए।
पिछले साल, सीबीआई ने एक शिकायत के आधार पर एक मामला भी दर्ज किया जिसमें एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके ने मंत्रालय की मंजूरी के बिना एफडीआई के रूप में एमनेस्टी इंडिया संस्थाओं को कथित रूप से 10 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए।
शिकायत में कहा गया है, “एफसीआरए का उल्लंघन करते हुए भारत में एमनेस्टी के एनजीओ गतिविधियों पर सभी 26 रसीदें मुख्य रूप से ब्रिटेन स्थित संस्थाओं से एमनेस्टी (भारत) को भेज दी गई हैं। बाद में एफसीआरए के उल्लंघन में भारत में एमनेस्टी के एनजीओ गतिविधियों पर खर्च किया गया है।”
#NEWS: Amnesty International India Halts Its Work On Upholding Human Rights In India Due To Reprisal From Government Of Indiahttps://t.co/W7IbP4CKDq
— Amnesty India (@AIIndia) September 29, 2020
हालांकि सरकार के आरोपों के अलावा कई ऐसे मामले आए जहाँ साबित हुआ कि बतौर मानवाधिकार संगठन ये निष्पक्ष नहीं बल्कि एक प्रायोजित प्रोपगंडा चला रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल हाल ही में दिल्ली दंगों में मुस्लिम आरोपियों के समर्थन में उतर आया जिन्होंने दंगों भड़काए और और जिन्होंने अपनी भूमिका खुद स्वीकार की।
इसके अलावा ये भीम आर्मी का पिछलग्गू संगठन बनता था किसी भी नेता की गिरफ्तारी हो ये संगठन उन्हें पहले ही निर्दोष साबित कर बचाने के लिए खड़ा हो जाता। सहारनपुर दंगे के आरोपी भीम आर्मी मुखिया चंद्रशेखर रावण पर NSA की कार्रवाई को भी गलत कहा था। वहीं भीमा कोरेगांव हिंसा में गिरफ्तार दलित एक्टिविस्टों का भी लगातार बचाव करता रहा है।
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