दलित शोषित,दलित असहाय,दलित वंचित और अन्य बहुत सारे शब्द रोज सुनने को कहीं न कहीं मिल ही जाते है। प्रिंट हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, ऐसे शब्दों से पटी सैकड़ो खबरे पढ़ने को रोजाना मिल जाएँगी।
पूरे भारतवर्ष में इन शब्दों को अलंकार के साथ गढ़ कर पत्रकारिता की कलाकारी करके समाचार परोसना आज आम बात है और हर पत्रकार ऐसी खबरों को किसी ना किसी प्रकार से कवरेज देना चाहता है। लेकिन हम आज आपको शब्दों के उस आडंबर से दूर और हकीकत के नजदीक ले जाना चाहते है जिसे न तो प्रिंट और ना ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कवर किया और न ही कोई पत्रकारिता का दंभ भरने वाले पत्रकार ने इसे बताना चाहा।
दरअसल बिहार राज्य के रोहतास जिले के ब्लॉक तिलौथू के अंतर्गत आने वाले गांव कोडर मे ऐसे ही गरीब ब्राह्मण बच्चे रहते हैं जिन्हें एक समय का भोजन भी नसीब नहीं है। कभी सुबह खाते हैं तो शाम मे भोजन नसीब नहीं होता तो कभी शाम खाते हैं तो अगले दिन भूखे रहना पड़ता है। माता पिता के न होने के चलते इन चारों बच्चों की देखरेख के लिए कोई भी मौजूद नहीं था। न ही कोई योजना न ही कोई सरकार। चार भाई-बहनो में दो भाई है व दो बहन है। साथ ही किसी भी बच्चे की उम्र 12 वर्ष से अधिक नहीं है। इस महामारी के दौर में उनके पास सैनिटाइजर तो दूर हाथ धोने के लिए शुद्ध पानी तक मौजूद नहीं है। मिट्टी के कच्चे मकान में न तो सोने को चारपाई है ना बिछाने को बिस्तर।
उन बच्चों से उनके माता – पिता के बारे में पूछा तो पता चला कि उनके पिता सुरेंद्र मिश्रा की मृत्यु 10 महीने पहले हो चुकी है और मां भी नहीं है। पिता की मौत अधिक कुपोषणता के चलते असमय बीमारी के हो जाने के कारण हो गई थी। जिसके बाद बच्चों की हालत और खस्ता हो गई।
सुबह सूखा भात बनाते है वहीं शाम मे भी खाते है तो कभी भूखे सो जाते हैं
अनाथ बच्चे दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। पूछने पर बच्चों ने बताया कि सुबह सूखा भात बनाते है वहीं शाम मे खाते हैं और कभी कभी तो भूखे सोना पड़ता है। लेकिन 59000 करोड़ की स्कालरशिप बाटने वाली सरकारे सामाजिक तालमेल बैठाने में मस्त है।
सोशल मीडिया में खबर वायरल हुई तो प्रशासन जागा
जब गाँव के शशि रंजन सिंह ने इन बच्चो की हालत सोशल मीडिया के माध्यम से बयान कि तो प्रशासन हरकत में आया। गांव के ही देव कुमार मिश्रा की मदद से शशि रंजन सिंह ने मिलकर इन बच्चो को तात्कालिक सहयोग करते हुए प्रशासन तक बात सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचाई। जिसके बाद प्रशासन की नींद टूटी और बच्चो के लिए भोजन की व्यवस्था की गई। वहीं बच्चो के चाचा नीरज मिश्रा को गार्जियन बनाते हुए आधार कार्ड तैयार कर बच्चों का नाम प्राइमरी स्कूल में लिखाया गया है।
जन अधिकार पार्टी के सुप्रीमो पप्पू यादव ने सहयोग किया
वहीं बिहार के बाहुबली नेता पप्पू यादव को जब यह बात पत्रकारों के माध्यम से पता चली तो उन्होंने तत्काल 1 लाख रूपए का अनाज बच्चों तक पहुंचाया। साथ ही बच्चो के बालिग होने तक 4 हजार रूपए प्रति माह देने की घोषणा भी करी।
लेकिन गाँव के कुछ लोगो ने बच्चों की हालत पर संतोष व्यक्त नहीं किया है। उनके अनुसार कुछ लोग बच्चों की गरीबी का फायदा अपनी जेब भरने के लिए कर रहे है।
कोई भी सरकारी योजना का नहीं मिलता है लाभ
जाति से ब्राह्मण होने के चलते इन गरीब बच्चों को कोई भी विशेष लाभ नहीं दिया जाता है। दलितों के लिए जहां सरकार 59000 हज़ार करोड़ की भारी भरकम स्कालरशिप निकाल देती है तो वहीं यह बच्चे अपनी जाति के चलते दाने दाने को मोहताज है।
ज्ञात होकि ऑटो रिक्शा दिलाने से लेकर तमाम योजनाओं का लाभ दलितों को सरकार मुफ्त में दे रही है लेकिन सामान्य जाति के लोगो को उसी सुवुधा से वंचित रख कर सामाजिक समरसता का सन्देश देती है। जहां एक पिता कुपोषित होने के चलते मर जाता है व बच्चे भूख से मरने को छोड़ दिए जाते है।
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