भारतीय क्रिकेट टीम ने जब 19 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीती तो तमाम क्रिकेट प्रेमियों ने खुशियाँ जाहिर करी। क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर से लेकर राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने भारतीय टीम को सीरीज जीत पर बधाई दी।
लेकिन आप यह सुनकर चौंक जाएंगे की जेंटलमैन गेम कहे जाने वाले क्रिकेट की गेंद को बनाने में गाय के चमड़े का इस्तेमाल किया जाता है। चमड़ा खेल का अभिन्न अंग है लेकिन चमड़ा क्रिकेट की बॉल का एक अत्यावश्यक तत्व है। क्रिकेट बॉल इंडस्ट्री पूर्णता गाय के चमड़े पर आश्रित है जिसे उन राज्यों से कानूनी और गैरकानूनी तरीकों से प्राप्त किया जाता है जहां गौ हत्या पर प्रतिबंध नहीं है। क्रिकेट बॉल का निर्माण कर रही कुछ छोटी इकाइयां गाय के चमड़े को भैंस के चमड़े से प्रतिस्थापित कर बॉल का निर्माण करती है मगर कुछ बड़े निर्माताओं द्वारा भैंस की खाल को इसलिए नकार दिया जाता है क्योंकि उनके अनुसार मोटी चमड़ी क्रिकेट की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए ठीक नहीं है।
उनके अनुसार क्रिकेट की गेंद को बनाने की प्रक्रिया के लिए महेश की मोटी चमड़ी उपयुक्त नहीं है क्योंकि भैंस की चमड़ी से बॉल का रंग और वाटर प्रूफिंग की समस्या होती है। और यह एक अधिक समय लेने वाली प्रक्रिया है। जितनी समय में आप एक भैंस की चमड़ी से 6 गेंदे बनाते हैं, इतनी समय में एक गाय की चमड़ी से 10 गेंदे बना पाएंगे।
एक गाय की चमड़ी से आप कुल 42 गेंद बना पाएंगे। मुंबई क्रिकेट क्लब को अपने टूर्नामेंट जैसे गिल्स शील्ड,हैरिस शील्ड,और कांगा लीग के लिए 1200 क्रिकेट बॉल की जरूरत होती है। यदि आप की गणित बेहतर है तो आप समझ पाएंगे की पेशेवर क्रिकेट में सालाना उपयोग में लाई जाने वाली गेंदों के लिए कितनी गायों को काटा जाएगा। जबकि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में एक गेंद को केवल 80 ओवर के लिए ही उपयोग किया जाता है। गेंद के निर्माण के लिए कुछ निर्माता गाय की चमड़ी के साथ भैंस या फिर बैल की चमड़ी का इस्तेमाल करते हैं लेकिन गाय की चमड़ी उनके लिए एक बेहतर मटेरियल है। बॉल निर्माताओं के अनुसार बॉल के निर्माण में गाय की चमड़ी के इस्तेमाल का कोई अन्य विकल्प नहीं है। क्योंकि गेंद निर्माण के लिए कोमल त्वचा चाहिए इसके लिए पहले से मृत गायों की चमड़ी का इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि गाय का उसी समय वध किया जाता है।
क्रिकेट बॉल के चमड़े को आवश्यक माना जाता है तो पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल यानी पेटा ने लंबे समय से खेलों में चमड़े का उपयोग किया जाने का विरोध किया है जिनमें से एक बेहतरीन उदाहरण तब का है जब उन्होंने 2011 विश्व कप के फाइनल में वानखेड़े स्टेडियम में विरोध प्रदर्शन किया था।
जिन जंतु प्रेमी प्रकृति प्रेमी व्यक्तियों को यह सुनकर चोट लगी तो उनके मन में सवाल उठा रहा होगा कि क्या इसका कोई विकल्प है… तब इसका जवाब संश्लेषित गेंदे (synthetic balls) हैं लेकिन निर्माताओं द्वारा और क्रिकेट की संस्था द्वारा उनकी खराब गुणवत्ता बता कर संश्लेषित गेंदों को नकार दिया जाता है। क्योंकि क्रिकेट, बोल कि जन्मजात आंतरिक गुणों से प्रभावित होता है। चुंकि संश्लेषित गेंदे जल विरोधी होती है तो मैदान की ओस के कारण गेंदबाज को बेहतर स्विंग नहीं मिल पाती है जोकि डे नाइट मैचों का एक महत्वपूर्ण अंग है।
पेटा ने इस संबंध में कहा कि बहुत से निर्माता है जो संश्लेषित गेंदे बनाते हैं और आज के वैज्ञानिक तकनीक के कारण ऐसा संभव नहीं है की संश्लेषित गेंदे क्रिकेट की आंतरिक गुणों को प्रभावित करें।
यूएसए के नेशनल कॉलेजिएट एथलेटिक एसोसिएशन (एनसीएए) और महिला राष्ट्रीय बॉस्केटबॉल एसोसिएशन दोनों ने खेलों में संश्लेषित गेंदों का बेहतर संक्रमण किया है और इनसे खेलों की गुणवत्ता भी प्रभावित नहीं हुई है। पेटा के अनुसार ब्रायर गार्डन पहली ऐसे बेसबॉल खिलाड़ी थे जिन्होंने एमएलबी यानी मेजर लीग बेसबॉल न्यूयॉर्क में बगैर चमड़ी के दस्ताने का उपयोग किया। फुटबॉल में भी लगभग दो दशक पहले से ही संश्लेषित गेंदों का इस्तेमाल किया जाने लगा क्योंकि चमड़े की गंदे घनीभूत स्थितियों में भारी हो जाती है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद आईसीसी इस संबंध में उदासीन ही है जिन्होंने अभी तक चमड़े के विरोध में कोई कदम नहीं उठाया।
चमड़ी के निर्माण की प्रक्रिया भी बहुत से पर्यावरणीय खतरो का जनक है। जैसे जानवर की खाल को चमड़े में रूपांतरण के लिए बहुत से जहरीले रसायन काम में लिए जाते हैं और चमड़े के चरम शोधालय (टेनरीज) के जहर से नदियां प्रदूषित होती है।
2014 में पेटा के सीईओ पूर्वा जे जोशीपुरा के अनुसार 200 से अधिक लोगों ने क्रिकेट में चमड़े के उपयोग को खत्म करने के लिए आईसीसी को पत्र लिखा था लेकिन आज तक कोई कदम नहीं उठाया गया है।
भारत में अमेज़न गाय के चमड़े की कालीन व पायदान रही है बेच
खेलों में चमड़े के प्रयोग के साथ ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन में भी गाय की खाल (cow hide) को बेचा जाता है ताकि लोग उनका इस्तेमाल घरों में कालीन और पायदान के रूप में करें।
जब से उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबंध लगा तो गाय के चमड़े की कीमत बढ़ गई। जो गाय की त्वचा की चादर की कीमत पहले 600 से ₹700 थी वह ₹2500 हो गई।
भारत में पंजाब, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, नागालैंड, त्रिपुरा जैसे राज्यों में गौ हत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है तो उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, झारखंड और राजस्थान में गौ हत्या को रोकने लिए विभिन्न कानून है जिनमें लगभग 10 साल सजा का प्रावधान है।
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