देवगढ़: जलाभिषेकम वर्चुअल लोकार्पण कार्यक्रम में गुरुवार सुबह 11.30 बजे मप्र के छिंदवाड़ा, सागर और मुरैना की जल संरचनाओं का ऑनलाइन लोकार्पण देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने किया.
सबसे खास देवगढ़ की बावडिय़ों का भी वर्चुअल लोकार्पण किया गया. जिसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित अन्य अतिथि भी ऑनलाइन शामिल हुए. देवगढ़ ग्राम की ऐतिहासिक बावडिय़ों में यहां अभी तक 100 बावडिय़ां मिल चुकी हैं. जिनमें से 50 बावडिय़ों के जीर्णोद्धार का काम जारी हैं और साथ ही 8 बावडियों का कार्य पूरा हो चुका है. योजना में कुल 53 लाख 52 हजार रुपए खर्च किए गए हैं.
देवगढ़ का किला मध्यप्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा जिले की मोहखेड़ तहसील के देवगढ़ ग्राम में 650 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर स्थित है. जो देवगढ़ किले के नाम से जाना जाता है. यह एक ऐतिहासिक किला है. जो छिंदवाड़ा जिले के सबसे अच्छे किलों में से एक है. इस किले में लोगों को आकर्षित करनें के लिए बहुत साक्ष्य मौजूद है. मगर वर्तमान में किले की बहुत सारी जगह नष्ट हो गई है, अब उनके अवशेष मात्र ही बचे हैं.
जलाभिषेकम लोकार्पण कार्यक्रम में दिए निर्देश
अप्रैल 2020 से लगातार मनरेगा योजना के तहत जीर्णोद्धार और मरम्मत का कार्य जारी है. कोरोना के दौरान यहां प्रवासी और स्थानीय मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया गया. बावडिय़ों के जीर्णोद्धार और मरम्मत होने से जल स्तर बढ़ चुका हैं जिसके चलते क्षेत्र के किसानों को सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिल रहा है.
प्राचीन देवगढ़ किले का इतिहास
देवगढ़ का किला 18वीं शताब्दी में बनाया गया था. यह किला गोंड वंश के राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था. ऐसा माना जाता हैं कि इस किले का निर्माण प्रतापी राजा जाटाव के द्वारा हुआ था. यह किला एक पहाड़ी पर बनाया गया है, किलें में देवगढ के राजा धुर्वा राजाओं की समाधि है.
देवगढ़ किले के आस-पास पुरानी इमारतें कुंए और बावलियों के खंडहर दूर-दूर तक आज भी दिखाई देते हैं, जो ईंट और चूने से बनी है. किन्तु आज देवगढ़ का टूटा किला, महलों के निशान और राजा जाटवा की समाधि के साक्ष्य वर्तमान में है. किलें की बनावट काफी हद तक मुगल वास्तुकला से संबंधित है. किलें में आपके देखने के लिए प्राचीन चंडी मंदिर, नक्कारखाना, कचहरी, मोती टांका और एक मस्जिद भी है. इस जगह की खूबसूरती को आप जानिए हमारी रिपोर्ट में…
प्राचीन चंडी मंदिर – देवगढ़ के किलें के एक बुर्ज में एक चंडी देवी मंदिर स्थित है. जिसे स्थानीय लोग चंडी मंदिर कहते हैं. इस किलें की रक्षा के उद्देश्य से मजबूत दीवारों को जोड़ते हुए 11 बुर्ज बनाए गए थे. यहाँ से शत्रु पर निगरानी रखने के लिए कुछ किलोमीटर की दूरी पर अलग अलग चैकियां बनाई गई थी.
नक्कारखाना – नक्कारखाना की छत पर सिपाई तैनात होतें थे, जो किले के अंदर चारों ओर की चौकसी करतें थे. नक्कारखाना में राजा के आगमन की सूचना आम लोग को नगाड़ा बजा कर दी जाती थी. नक्कारखाना में वादक भी मौजूद होते थे, जो राजा के आगमन पर मधुर ध्वनि बजाकर अभिनंदन करते थे. नक्कारखाना की बाहरी दीवारों को सुंदर अलंकारों से सजाया गया है, जो इसकी शोभा को बढ़ाते थे.
कचहरी – कचहरी में राजा का दरबार लगाया जाता था. यहां मंच पर राजा और दरबारी बैठा करते थे. जनता मंच के सामने खड़ी होती थी. मंच की छत लकड़ी के सुंदर स्तंभों पर आधारित थी. राजा के बैठने के लिए मंच पर गद्दी बनी है, जो उस समय सुंदर रत्नों सुसज्जित थी. कचहरी में लोग राजा की अनुमति के अनुसार ही प्रवेश करते थे. यहां राजा की सुरक्षा हेतु कचहरी में उपस्थित आम लोगों पर नजर रखी जाती थी.
मोती टांका – देवगढ़ के किलें में आपको एक तालाब भी देखने मिलता है, जिसे मोती टांका भी कहा जाता है. इस किलें में पानी की सुचारू व्यवस्था थी. यह पर पानी को एकत्र करने के लिए बहुत सारे तालाब और कुए बनाये गए थे, इन तालाबों में मोती टांका फैमस है.
मस्जिद – देवगढ़ के किलें में आपको एक मस्जिद भी देखने मिल जाती है. राजा जाटव की मृत्यु के पश्चात उनके प्रापोत्र महराज कोकवा द्वितीय के पुत्रों में देवगढ़ के शासक बनने के लिए झगड़ा शुरू हो गया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्र गद्दी पाने के लिए मुगल सम्राट औरंगजेब की सहायता लेकर देवगढ़ का राज्य प्राप्त किया. इस सहायता के बदले उसने इस्लाम धर्म अपना लिया और बख्त बुलंद शाह की उपाधि धारण की. इसी अवसर पर यहां मस्जिद का निर्माण किया गया था.
Kapil reports for Neo Politico Hindi.