नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कानून विभाग के एलएलबी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति को पढ़ाने का सुझाव DU के कुलपति ने खारिज कर दिया है। बीते दिनों ही विभाग ने मनुस्मृति को कोर्स में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था। बता दें कि मनुस्मृति एक प्राचीन हिंदू ग्रंथ है, जो राज्य में कानून व्यवस्था को बनाये रखने के लिए एक संविधान के रूप में स्थापित थी। हालाँकि कई वर्षों से अंबेडकरवादी इसका विरोध करते आये हैं।
विश्वविद्यालय ने एक बैठक की और कानून विभाग द्वारा मनुस्मृति को सुझावित पठन के रूप में शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। us
क्या है मनुस्मृति?
मनुस्मृति एक पुराना हिंदू ग्रंथ है, जो सामाजिक, धार्मिक और कानूनी नियमों का संग्रह है। यह ग्रंथ प्राचीन भारतीय समाज में जीवन के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करने के लिए लिखा गया था। इसमें कई ऐसे नियम और सिद्धांत हैं, जो मानव को अपराध रहित जीवन जीने के नियम बताते हैं। हालाँकि कई बार मार्क्सवादी सोच के लोग मनुस्मृति के खिलाफ दुष्प्रचार करते नजर आते हैं।
मार्क्सवादी शिक्षकों का विरोध
जैसे ही यह खबर फैली कि मनुस्मृति को एलएलबी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, तो अर्बन नक्सल विचारों के छात्रों और शिक्षकों ने इसका कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि मनुस्मृति में कई बातें असमानता को बढ़ावा देती हैं। छात्रों ने प्रदर्शन किया और मांग की कि इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लिया जाए। उनका यह भी कहना था कि आधुनिक कानूनी शिक्षा में ऐसे ग्रंथों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
पाठ्यक्रम में परिवर्तन
सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने कुलपति को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा, “हमें जानकारी मिली है कि मनुस्मृति को छात्रों के लिए ‘सुझावित पठन’ के रूप में सिफारिश की गई है, जो महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों की प्रगति और शिक्षा के खिलाफ है। मनुस्मृति का कोई भी हिस्सा शामिल करना हमारे संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
कांग्रेस पार्टी ने भी इस प्रस्ताव पर नाराजगी जताई। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि यह आरएसएस के दशकों पुराने प्रयास का हिस्सा है, जो संविधान और डॉ. अंबेडकर की विरासत पर हमला करने का है।
Nancy Dwivedi
Nancy Dwivedi reports for Neo Politico.