SC-ST एक्ट पर कार्यशाला: झूठे केस पर उठा हाई कोर्ट जज का दर्द, बताया कैसे एक युवक के 6 साल हुए बर्बाद

जबलपुर: एससी-एसटी एक्ट को लेकर संभाग स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई, जिसमें मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कई अहम मुद्दों पर जोर दिया। उन्होंने प्रशासन, पुलिस और न्यायपालिका के बीच बेहतर समन्वय की जरूरत पर बल दिया। जस्टिस विवेक ने कहा कि जहां दलाल सक्रिय होकर झूठे मामलों के जरिए बेगुनाहों को फंसाते हैं, वहीं ईमानदार और गहरी जांच के अभाव में सच्चे मामलों में भी न्याय नहीं हो पाता।

झूठे मामलों में बेगुनाहों को फंसाना गंभीर समस्या

कार्यशाला में जस्टिस विवेक अग्रवाल ने खुलासा किया कि कुछ दलालों का नेटवर्क सक्रिय है, जो एससी-एसटी एक्ट के तहत झूठे मामलों को न्यायालय में लेकर आते हैं। उन्होंने कहा कि ये लोग झूठे केस के जरिए मुआवजे का लालच देकर बेगुनाहों को फंसाते हैं और अपना परसेंटेज हासिल करते हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन, पुलिस और न्यायपालिका को अपने कार्यों में अधिक ईमानदारी और संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है। जस्टिस ने यह भी कहा कि कुछ जिलों में एससी-एसटी वर्ग के कास्ट सर्टिफिकेट को लेकर भ्रम बना हुआ है। उन्होंने मामलों की गलत धाराएं जोड़ने को लेकर अधिकारियों को सतर्क रहने की सलाह दी।

“छह साल झूठे केस में जेल में रहकर बर्बाद हुए ज़िंदगियां”

कार्यशाला के दौरान जस्टिस विवेक ने कहा कि हाल ही में उन्होंने एक अपील में दो युवकों को छह साल की सजा काटने के बाद रिहा किया। यह मामला झूठा साबित हुआ, लेकिन तब तक उनके जीवन का बड़ा हिस्सा जेल में खराब हो चुका था। जस्टिस ने इस घटना का हवाला देकर कहा कि झूठे मामलों से समाज पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप आरोपी का सम्मान नष्ट होता है, और वह समाज में वापस जाने के बाद भी सम्मानित जीवन जीने में असमर्थ रहता है। जस्टिस विवेक ने अधिकारियों से अनुरोध किया कि मामलों की जांच में गंभीरता बरतें और सत्यता पर फोकस करें। उन्होंने कहा, “जहां अधिकार हैं, वहां कर्तव्य भी होना चाहिए।”

पुलिस और अभियोजन को चाहिए सतर्कता

कार्यशाला में पुलिस और अभियोजन अधिकारियों को निर्देशित करते हुए जस्टिस ने कहा कि जांच की विश्वसनीयता मजबूत होनी चाहिए। जांच के दौरान झूठी गवाही या पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। साथ ही, महिलाओं से संबंधित अपराधों में झूठी रिपोर्ट दर्ज करने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने की आवश्यकता को भी उन्होंने रेखांकित किया। कार्यशाला में खास तौर पर चार्जशीट की देरी पर चर्चा हुई। जस्टिस ने इस पर चिंता जताई कि अधूरी या सतही जांच के चलते चार्जशीट लंबित रह जाती हैं। इससे न्याय प्रक्रिया में देरी होती है और दोषियों को बचने का मौका मिलता है।

अधिकारियों और प्रतिभागियों के संबोधन

कार्यशाला में संचालक अभियोजन बीएल प्रजापति ने अभियोजन की कमजोरियों को सुधारने के सुझाव दिए और कहा कि अधिकारियों को समाज के कमजोर वर्गों की संवेदनाओं को ध्यान में रखकर काम करना चाहिए। एसपी संपत उपाध्याय ने एससी-एसटी एक्ट के तहत की जाने वाली गिरफ्तारी में जरूरी सतर्कता पर प्रकाश डाला। कलेक्टर दीपक सक्सेना ने कहा कि ऐसे मामलों में पारदर्शी जांच प्रक्रिया से ही पीड़ितों को न्याय मिल सकता है। कार्यक्रम का संचालन एडीपीओ सरिका यादव ने किया। इस दौरान विशेष न्यायाधीश गिरीश दीक्षित ने एससी-एसटी एक्ट से संबंधित नियमों, विवेचना की कमियों और जांच के तरीकों पर अधिकारियों को जागरूक किया। कार्यक्रम का समापन जस्टिस विवेक अग्रवाल के उस संदेश के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने कहा कि जांच और अभियोजन में पारदर्शिता से ही समाज में न्याय व्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। कार्यक्रम के अंत में जस्टिस विवेक को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया।

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