रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब एक घंटे की दूरी पर बसा तुलसी गांव आज पूरे भारत में अपनी अनूठी पहचान बना चुका है। यह गांव किसी आम भारतीय गांव जैसा ही दिखता है—संकरी गलियों में एकमंजिला मकान, पीपल और बरगद के पेड़ों की छांव में चर्चा करते बुजुर्ग, और गांव के बीचोबीच स्थित एक बड़ा पानी का टैंक। लेकिन इस गांव की एक खासियत इसे बाकी गांवों से अलग बनाती है—यह भारत का ‘यूट्यूब विलेज’ बन चुका है।
डिजिटल क्रांति की शुरुआत
तुलसी गांव में यूट्यूब क्रिएटर्स की कहानी 2016 में शुरू हुई जब गांव के दो युवा—जय और ज्ञानेंद्र शुक्ला—ने कंटेंट क्रिएशन में हाथ आजमाने का फैसला किया। जय एक शिक्षक थे और ज्ञानेंद्र नेटवर्क इंजीनियर, लेकिन दोनों को वीडियो एडिटिंग और डिजिटल प्रोडक्शन का कोई अनुभव नहीं था। “हमने बस मजे के लिए वीडियो बनाने शुरू किए,” ज्ञानेंद्र ने बताया। लेकिन शुरुआती दिनों में उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। कॉपीराइट समस्याओं के कारण वीडियो हटाए जाते थे और तकनीकी ज्ञान की कमी ने भी राह में रोड़े अटकाए। बावजूद इसके, उन्होंने हार नहीं मानी। 2018 में उनके प्रयास रंग लाए, जब उन्होंने ‘Being Chhattisgarhiya’ नामक यूट्यूब चैनल शुरू किया। यह चैनल देखते ही देखते लोकप्रिय हो गया, और इसके जरिए होने वाली कमाई ने अन्य ग्रामीणों को भी इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे पूरा गांव डिजिटल क्रिएशन की दिशा में आगे बढ़ने लगा।
फैमिली फ्रेंडली कंटेंट
आज तुलसी गांव के हर कोने में कैमरे और क्रिएटिव लोगों की हलचल देखी जा सकती है। यहां के यूट्यूब क्रिएटर्स कॉमेडी स्किट्स, डांस परफॉर्मेंस, DIY वीडियो और सामाजिक मुद्दों से जुड़े कंटेंट बनाते हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि गांव के सभी यूट्यूब क्रिएटर्स ने एक नियम तय किया है—उनके वीडियो हमेशा फैमिली फ्रेंडली होंगे। तुलसी गांव के यूट्यूबर्स अपनी संस्कृति और परंपराओं को बनाए रखते हुए मॉडर्न वीडियो बनाते हैं। उदाहरण के लिए, यहां के वीडियो में छेरछेरा पर्व और स्थानीय चुनावों की झलक देखने को मिलती है। “हम चाहते हैं कि हमारी युवा पीढ़ी अपने त्योहारों और रीति-रिवाजों को समझे और उन्हें आगे बढ़ाए,” ज्ञानेंद्र ने बताया।
लोकल टैलेंट से बना डिजिटल उद्योग
तुलसी गांव में फिलहाल लगभग 40 एक्टिव यूट्यूब चैनल हैं, जिनमें से कुछ ने काफी लोकप्रियता हासिल कर ली है। ‘Back Benchers Creation’ (24,800+ सब्सक्राइबर्स) और ‘Nimga Chhattisgadhiya’ (9,200+ सब्सक्राइबर्स) जैसे चैनल तेजी से बढ़ रहे हैं। इन चैनलों की आमदनी भी अच्छी खासी हो रही है। ज्यादातर यूट्यूबर्स हर महीने 20,000 से 40,000 रुपये तक कमा रहे हैं। यूट्यूब एड-रेवेन्यू के अलावा, कई क्रिएटर्स को छोटे स्तर के विज्ञापन और ब्रांड प्रमोशन के कॉन्ट्रैक्ट भी मिल रहे हैं।
प्रशासन की मदद से बढ़ता कदम
तुलसी गांव के डिजिटल क्रिएटर्स की सफलता को देखते हुए रायपुर जिला प्रशासन ने भी सहायता के लिए कदम बढ़ाया है। जिला कलेक्टर सर्वेश्वर भुरे ने बताया, “हम इन क्रिएटर्स को प्रोफेशनल ट्रेनिंग और अत्याधुनिक सुविधाएं देने के लिए काम कर रहे हैं।” इसके तहत ‘Hummer Flix’ नामक छत्तीसगढ़ का पहला हाई-टेक स्टूडियो तैयार किया गया है, जहां क्रिएटर्स को ड्रोन कैमरा, गिंबल और एडवांस कंप्यूटर जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके अलावा, प्रशासन एक डिजिटल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोलने की भी योजना बना रहा है, जहां aspiring क्रिएटर्स को प्रोफेशनल स्किल्स सिखाई जाएंगी।
गांव की एकजुटता ने किया कमाल
तुलसी गांव की सफलता सिर्फ डिजिटल क्रिएशन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक मिसाल भी है कि जब कोई समुदाय एकजुट होकर काम करता है, तो असंभव लगने वाली चीजें भी संभव हो सकती हैं। यहां बच्चे, बुजुर्ग, किसान और शिक्षक सभी किसी न किसी तरह से कंटेंट क्रिएशन में अपना योगदान दे रहे हैं। यह गांव उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो छोटे शहरों या गांवों में रहकर भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं। तुलसी गांव ने दिखा दिया कि अगर जुनून और मेहनत हो, तो यूट्यूब सिर्फ एक प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि आजीविका का एक बड़ा माध्यम भी बन सकता है।