मालेगांव बम धमाका केस में 8 मई को फैसला, NIA ने साध्वी प्रज्ञा को फांसी देने की मांग

भोपाल: मध्य प्रदेश में 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में अब फैसला सुनाए जाने की तारीख तय हो चुकी है। मुंबई की विशेष एनआईए अदालत ने 17 साल पुराने इस मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने कहा है कि वह 8 मई को इस मामले में फैसला सुनाएगी। इस मामले में भोपाल, मध्य प्रदेश से पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत सात लोग आरोपी हैं। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अदालत से इन सभी को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए की धाराओं के तहत सजा देने की मांग की है।

एनआईए ने अदालत में पेश की अंतिम दलीलें

एनआईए ने मुंबई की विशेष अदालत में करीब 1500 पन्नों की अंतिम लिखित दलीलें जमा की हैं। इन दलीलों में एजेंसी ने अदालत से आग्रह किया कि अपराध की गंभीरता को देखते हुए आरोपियों को सख्त सजा दी जाए। एनआईए का कहना है कि यह विस्फोट सुनियोजित था और इसे एक खास विचारधारा के तहत अंजाम दिया गया। एजेंसी ने अपनी दलील में यह भी कहा है कि इस तरह के मामलों में नरमी बरतना समाज में गलत संदेश दे सकता है। अदालत को अपराध के अनुपात में फैसला लेना चाहिए।

धमाके में छह लोगों की मौत, सौ से अधिक घायल हुए थे

सितंबर 2008 में मालेगांव में एक बाइक में विस्फोट हुआ था, जिसमें छह मुस्लिम नागरिकों की मौत हो गई थी और सौ से अधिक लोग घायल हो गए थे। यह घटना महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव कस्बे में हुई थी, जो उस वक्त रमजान के दौरान भीड़भाड़ वाला इलाका था। यह पहली बार था जब किसी आतंकी हमले में दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोगों को आरोपी बनाया गया था। महाराष्ट्र एटीएस ने शुरुआती जांच में साध्वी प्रज्ञा को आरोपी बताया था और उनकी मोटरसाइकिल को विस्फोटक ले जाने वाला वाहन माना गया था।

सात आरोपियों पर साजिश और हत्या के आरोप

इस केस में कुल सात आरोपी हैं—साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, समीर कुलकर्णी, स्वामी दयानंद पांडे और सुधाकर चतुर्वेदी। इन पर यूएपीए की धारा 16 और 18 के तहत आतंक फैलाने और साजिश रचने का आरोप है। इसके अलावा आईपीसी की धाराएं 120बी, 302, 307, 324, 326 और 427 भी लगाई गई हैं। मामले में आरोप है कि ये सभी आरोपी एक खास विचारधारा के तहत एक संगठित योजना का हिस्सा थे, जिसका मकसद समाज में डर फैलाना था।

गवाहों के बयान बदले, एनआईए ने बताया अविश्वसनीय

इस मुकदमे में कुल 323 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे, जिनमें से 32 गवाह अपने बयान से मुकर गए। एनआईए ने इन गवाहों को अदालत में अविश्वसनीय बताते हुए कहा है कि इनकी गवाही के बदलने से आरोपियों को राहत नहीं मिलनी चाहिए। एजेंसी का कहना है कि यह मामला वर्षों से चल रहा है और अब जब फैसला करीब है, तो गवाहों के बयान बदलना न्याय में बाधा पैदा करने जैसा है। अदालत को इस आधार पर कोई नरमी नहीं दिखानी चाहिए। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि विशेष अदालत 8 मई को क्या फैसला सुनाती है। पूरे देश की निगाहें इस हाई प्रोफाइल केस पर टिकी हैं।

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