बाराबंकी जिले के रामसनेही घाट तहसील अन्तर्गत तारापुर निवासी उमाकांत महाराज आज भी छप्पर के नीचे सपरिवार रहते हैं। यह कहानी बीजेपी पार्टी के एक ऐसे योद्धा की है जोकि खुद पक्के घर के लिए दर दर भटक रहा है। कभी चुनावों में पीएम आवास योजना का बखान करने वाले उमाकांत जी खुद प्लास्टिक के नीचे अपने सर को ढ़कने को मजबूर है।
पाठक जी से बात करने पर पता चला कि बुजुर्ग व पार्टी के द्वारा उपेक्षित होने के बावजूद पाठक जी के मन में सरकार को लेकर कोई गिला शिकवा नहीं है। बातचीत में पाठक जी ने अपनी दुखद स्थिति को साझा करते हुए बताया कि उनके दो लड़के हैं और कुछेक बीघे खेती भी है। चूंकि लड़कों के पास कोई ठोस रोजगार का साधन नहीं है इसलिए स्थिति दयनीय बनी हुई है।
बड़े लड़के के विवाह के बाद परिवार बढ़ गया ऐसे में अब बहू के आने के बाद बाकी लोगों को छप्पर का सहारा लेना पड़ा। पाठक जी की माली हालत ऐसी नहीं है कि वे घर बनवा सकें। ऐसे में टूटी छप्पर पर प्लास्टिक डालकर जीवन यापन को विवश हैं। एक अन्य स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि पाठक जी के पास खेत भी बहुत नहीं है कि कुछ बेचकर घर बनवा सकें। दो बच्चे हैं उनके भविष्य को ध्यान में रखते हुए थोड़ा बहुत जो खेत है वह बेचना उचित नहीं समझते।
पाठक जी बड़े उत्साह से बताते हैं कि वे जनसंघ के जमाने से पार्टी का हिस्सा रहे हैं। कुछ दिनों तक वे क्षेत्र में महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे। वर्तमान में भी पाठक जी बूथ प्रमुख हैं और पार्टी के लिए निःस्वार्थ भाव से अपना सर्वोच्च देने में लगे रहते हैं।
एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि कभी-कभी लोग उन्हें उलाहना भी देते हैं कि उन्होंने जिस पार्टी के लिए जीवन भर लोगों से लड़ने का काम किया है उसने उनको क्या दिया है। लेकिन मजाल है कि पाठक जी की आस्था को कोई डिगा सके।
पाठक जी ने बातों ही बातों में बताया कि उन्होंने किस तरह से आडवाणी जी की रथयात्रा में हिस्सेदारी की थी। मंदिर आंदोलन के दौरान भी पाठक जी हरसंभव सक्रिय थे। आज भी एक उम्र हो जाने के बाद भी पाठक जी की पार्टी के प्रति आस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। उन्हें आशा है कि उनकी सरकार उनकी समस्या का समाधान अवश्य करेगी।
उन्हें संतोष है कि अगर उनकी समस्या का समाधान नहीं भी हुआ तो भी कोई बात नहीं है। सबसे बड़ी खुशी की बात यह है कि लंबे समय के बाद उत्तर प्रदेश में सुशासन शुरू हो सका है। पाठक जी प्रदेश के भविष्य को लेकर आशान्वित हैं और प्रसन्न हैं कि भले ही उनका काम नहीं हो पा रहा है लेकिन दूसरों का काम हो रहा है यह प्रसन्नता का विषय है।
हलांकि हमसे बातचीत करते समय पाठक जी ने पार्टी अथवा सरकार पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया लेकिन अपनी समस्या के लिए थोड़े संजीदा अवश्य दिखे।
निश्चित रूप से यह दुख की बात है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी में अपना जीवन खपा दे और एक मकान के लिए तरसे तो यह शर्म का विषय है।
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