नई दिल्ली: 21 अगस्त को एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ किये गए भारत बंद के आह्वान का ग्रामीण क्षेत्रों में फीका असर देखने को मिला। वहीँ शहरों में लोगों को मालूम भी नहीं था कि ऐसा कोई बंद भी बुलाया गया है। हालांकि, यह बंद मुख्य रूप से सिर्फ तीन-चार प्रभावशाली दलित जातियों के नेतृत्व में आयोजित किया गया जिस वजह से इसे व्यापक समर्थन नहीं मिल सका। बंद का असर कुछ छुटपुट क्षेत्रों में ही देखा गया, जबकि अधिकांश स्थानों पर जनजीवन सामान्य रहा।
ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में प्रदर्शन और नेताओं का समर्थन
इस बंद का प्रभाव मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में देखा गया, जहां बहुजन समाज पार्टी (बसपा), आजाद समाज पार्टी, और भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने छोटे-मोटे प्रदर्शन किए। ग्वालियर, भिंड, और मुरैना जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर बंद को सफल बनाने का प्रयास किया। ग्वालियर में झलकारी बाई पार्क से अंबेडकर पार्क तक जुलूस निकाला गया, जिसे बसपा के कार्यवाहक अध्यक्ष सतीश मंडेलिया ने नेतृत्व किया। आजाद समाज पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रूपेश कैन ने भी ग्वालियर में बंद के समर्थन में प्रदर्शन किया। यह लोगों का प्रदर्शन कम पार्टी की रैली अधिक दिखाई पड़ रही थी।
राजनीतिक नेताओं की बात करें तो, बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बंद का समर्थन किया। आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद रावण ने भी इस बंद के समर्थन में अपने कार्यकर्ताओं से शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अपील की थी। भीम आर्मी के प्रमुख विनय रतन सिंह ने भी इस बंद का समर्थन किया, और ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में अपने समर्थकों से इसमें भाग लेने का आग्रह किया।
अन्य क्षेत्रों में बंद का कमजोर असर
हालांकि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कुछ प्रदर्शन हुए, लेकिन अन्य स्थानों पर बंद का असर काफी कमजोर रहा। इंदौर, भोपाल, और जबलपुर जैसे प्रमुख शहरों में बंद का कोई बड़ा असर नहीं देखा गया। प्रशासन की सख्ती और व्यापक समर्थन के अभाव में, बंद केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रहा। अधिकांश जगहों पर व्यापार और जनजीवन सामान्य रहा, और बंद का आह्वान किसी बड़े आंदोलन का रूप नहीं ले सका।
प्रशासन की सख्ती
प्रशासन ने बंद के दौरान किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए कड़े कदम उठाए थे। पुलिस बलों की तैनाती के साथ ही प्रशासन ने व्यापारियों और आम जनता से सामान्य दिनचर्या बनाए रखने की अपील की थी। प्रशासन की सख्ती और जनता के समर्थन के अभाव में, बंद का प्रभाव मामूली रहा और यह केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया।