वाराणसी- काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के हेड प्रोफेसर शिशिर बसु के खिलाफ उनके ही विभाग की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने उनके खिलाफ छेड़खानी और एससी-एसटी एक्ट सहित अन्य आरोपों में मुकदमा दर्ज कराया था, जहां 9 साल बाद वाराणसी कोर्ट ने सुनवाई के दौरान उन्हें सभी आरोपों से दोषमुक्त करते हुए बाइज्जत बरी कर दिया हैं।
जानिए क्या था मामला?
दरअसल बीएचयू के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की एक असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. शोभना नार्लीकर ने विभाग के हेड प्रोफेसर शिशिर बसु के खिलाफ 16 मार्च 3013 को यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टोरियल बोर्ड को शिकायत पत्र देकर आरोप लगाया था कि प्रोफेसर के इशारों पर विभाग के छ: छात्र-छात्राएं उन्हें जातिसूचक गालियां देते है और उनके अश्लील फोटो खींच कर उन्हें प्रताड़ित करते हैं।
इतना ही नहीं असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. शोभना नार्लीकर ने धमकी दी कि अगर प्रोफेसर शिशिर बसु के साथ-साथ सभी छात्रों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई नहीं की गई, तो वह आमरण अनशन शुरू करेगी। जिसके बाद यूनिवर्सिटी के प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने असिस्टेंट प्रोफेसर के शिकायत पत्र को लंका थाने फारवर्ड कर दिया और इसी आधार पर लंका थाने में हेड प्रोफेसर शिशिर बसु के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया था।
कोर्ट ने 9 साल बाद किया दोषमुक्त
वाराणसी कोर्ट में विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) संजीव कुमार सिन्हा ने कहा कि पीड़िता का कहना है कि अभियुक्त उसे वर्ष 2003 से प्रताड़ित कर रहा था, लेकिन इसके बावजूद उसने 10 वर्ष तक थाने में कोई भी शिकायत दर्ज नहीं कराई। इससे साफ तौर पर पीड़िता के आरोप पर संशय उत्पन्न होता है, इतना ही नहीं वाराणसी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा गठित की गई कमेटियों की जांच में भी यौन उत्पीड़न जैसी कोई बात सामने नहीं आई है।
अन्य दस्तावेजों और साक्ष्यों को देखने पर भी यही प्रतीत होता है कि पीड़िता ने शिकायत शैक्षणिक विवादों के चलते दर्ज कराई थी और वह पहले भी अन्य फैकल्टी मेंबर्स के खिलाफ आरोप लगा चुकी है, जिसके बाद कोर्ट ने प्रो. बसु को सभी आरोपों से बरी कर दिया।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.