रांची- झारखंड हाईकोर्ट ने तीन व्यक्तियों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत दर्ज एक मुकदमें को रद्ध कर दिया हैं। कोर्ट ने कहा कि एससी एसटी एक्ट समाज के हाशिये पर रहने वाले वर्ग के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया है, इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत दुश्मनी निभाने या बदला लेने के लिए उत्पीड़न के साधन के रूप में नहीं होना चाहिए।
जानिए क्या है पूरा मामला?
आपको बता दे कि याचिकाकर्ताओं नयन प्रकाश सिंह, हरेन्द्र सिंह और गणेश प्रसाद सिंह ने एससी एसटी एक्ट के मामले में 16 फरवरी 2022 के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। जिसमें शिकायतकर्ता रघुनाथ राम ने आरोप लगाया कि यह पूरा विवाद 2001 और 2005 में खरीदी गई जमीन से पैदा हुआ था, जहां याचिकाकर्ताओं ने उसे कानूनी प्रकिया में फंसाकर जमीन से बेदखल कर दिया था।
इतना ही नहीं शिकायतकर्ता रघुनाथ का आरोप था कि 2015 में याचिकाकर्ता और 8 अन्य लोगों उसके घर में घुस आए और अपमानजनक टिप्पणी करते हुए उसके साथ मारपीट कर दी, जिसके बाद उसने शिकायत दर्ज कराई थी।
हालांकि सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी ने इस पूरे मामले में एससी एसटी एक्ट के तहत आरोपों की वैधता पर पर सवाल उठाया और कहा एससी एसटी एक्ट का कानून शोषित और वंचितों की सुरक्षा और न्याय के लिए बनाया गया है, यह आपसी रंजिश या पुरानी दुश्मनी का हिसाब किताब बराबर करने के लिए नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि शिकायतकर्ता के साथ विवाद उसकी जाति के कारण नहीं, बल्कि भूमि विवाद के कारण हुआ था।
इतना ही नहीं कोर्ट ने घटना के दौरान जातिगत अपमान के संबंध में गवाहों के बयानों पर भी विरोधाभास की ओर इशारा किया और इस बात पर जोर दिया कि एससी एसटी एक्ट के तहत किसी भी मामले को वैध मानने के लिए जाति के आधार पर जानबूझकर अपमान और धमकी के सबूत की आवश्यकता होती हैं। न्यायाधीश ने कहा कि कोर्ट को इस पूरे मामले में घटना के संबंध में स्पष्टता की कमी और गवाहों के बयानों में भी विसंगतियां मिली हैं।
जिसके फलस्वरूप कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामला दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का मामला हैं और एससी एसटी एक्ट के प्रावधानों के तहत इस मामले को जारी रखने की अनुमति देना कोर्ट की प्रकिया का दुरूपयोग होगा।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.