एससी एसटी एक्ट के तहत दर्ज केस में समझौता करने के लिए लगाई गई याचिका पर सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है, न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ कहना है कि एससी एसटी एक्ट के तहत दोष सिद्ध होने पर ही पीड़ित मुआवजे का हकदार हैं।
इतना ही नहीं कोर्ट का कहना है कि केवल प्राथमिकी दर्ज होने पर ही मुआवजा देना कर दाताओं के पैसे की बर्बादी हैं।
जानिए क्या था मामला?
ऐसा ही एक केस रायबरेली के नसीराबाद थाना क्षेत्र का है जहां पीड़ित ने पहले खुद ही एससी एसटी एक्ट में प्राथमिकी दर्ज करवाई थी और पुलिस द्वारा जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल करने पर दोनों पक्षों ने आपस में समझौता कर कार्रवाई रद्द करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर कर दी।
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि आये दिन बड़ी संख्या में इस प्रकार के मामलों को नोटिस किया जा रहा है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा मुआवजा प्राप्त करने के बाद शिकायतकर्ता खुद ही कार्यवाही को रद्द करने के लिए अभियुक्त के साथ समझौता कर लेता है और धारा 482 सीआरपीसी के तहत कोर्ट में याचिका दायर कर देता है।
ऐसा ही कुछ इस केस में भी हुआ, जहां पीड़ित ने पहले ही राज्य सरकार द्वारा मिलने वाले मुआवजे के रूप में 70 हजार रुपये ले चुका हैं। जिसे राज्य सरकार चाहे तो वह वापिस लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
तुरंत मुआवजा देना पैसे का दुरूपयोग
न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने कहा कि न्यायालय का विचार है कि इस प्रक्रिया में करदाताओं के पैसे का दुरुपयोग किया जा रहा है। मुआवज़े का भुगतान केवल आरोपी के दोषसिद्धि और प्राथमिकी दर्ज न करने और आरोप पत्र प्रस्तुत करने के बाद ही करना उचित होगा।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.