गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में याचिकाकर्ता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दर्ज एससी एसटी एक्ट के मुकदमे को खारिज कर दिया और इसके दुरूपयोग को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की हैं। न्यायमूर्ति संदीप भट्ट ने कहा कि हाशिए पर रहने वाले समुदायों के सदस्यों को उत्पीड़न और अत्याचारों से बचाने के लिए इस कानून को बनाया गया था, लेकिन इसका दूरूपयोग इसकी प्रभावकारिता को कमजोर कर सकता हैं।
न्यायमूर्ति ने कहा कि इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को अत्यंत सावधानी, परिश्रम और निष्पक्ष तरीके से संभालना जांच अधिकारियों की बड़ी जिम्मेदारी हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह देखना काफी निराशाजनक है कि कई मौकों पर शिकायतकर्ता और संबंधित अधिकारियों के द्वारा ही एससी एसटी एक्ट का दुरूपयोग किया जा रहा हैं।
जानिए क्या था पूरा मामला?
आपको बता दे कि भारतीय जनता पार्टी के एक कार्यकर्ता ने एक अन्य भाजपा नेता, जो चोटिला नगरपालिका में अध्यक्ष के पद पर कार्यरत थे। उनके खिलाफ एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया था, जिसमें जाति आधारित दुर्व्यवहार और अपमान के गंभीर आरोप शामिल थे। हालांकि कोर्ट को कुछ ऐसे ठोस सबूत मिले, जो यह बताते थे कि शिकायत राजनीतिक द्वेष भावना के चलते दर्ज कराई गई थी।
न्यायमूर्ति संदीप भट्ट ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता और याचिकाकर्ता दोनों ही भाजपा के सक्रिय सदस्य थे, उनमें से याचिकाकर्ता ने चोटिला नगरपालिका से अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ा था और शिकायतकर्ता को कांग्रेस के पक्ष में वोट करने के कारण भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। जिसके बाद दोनों के बीच आपसी विवाद शुरू गया था, इसी के चलते एससी एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया गया था।
कोर्ट ने कार्रवाही के दौरान सभी तथ्यों और सबूतों की सावधानीपूर्वक जांच करने पर पाया कि मुकदमा याचिकाकर्ता की राजनीतिक छवि को धूमिल करने की सोची समझी साजिश थी और याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए दर्ज मुकदमे को रद्द कर दिया हैं।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.