हर दस साल में आरक्षण की समीक्षा न होने पर हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार और NCBC से मांगा जवाब

हरियाणा- राजनीति के लिए आरक्षण का इस्तेमाल और मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर दिए गए आरक्षण को रिव्यू न करने को चुनौती देने वाली स्नेहाचंल चैरिटेबल ट्रस्ट की याचिका पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार और नेशनल कमीशन फाॅर बैकवर्ड क्लास (एनसीबीसी) से जवाब तलब किया हैं।

आपको बता दे कि स्नेहाचंल चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें हाईकोर्ट को बताया गया कि एनसीबीसी की गाइड लाइन के अनुसार व इंदिरा साहनी और राम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुका है कि हर दस साल में आरक्षण की समीक्षा की जानी चाहिए। लेकिन बावजूद इसके आजादी के बाद जब से संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गई है, तब से लेकर आज तक आरक्षण की समीक्षा नहीं हुई।

हमेशा से ही राजनीति के लिए आरक्षण को वैशाखी के रूप में इस्तेमाल किया गया हैं। बोट बैंक के लिए आरक्षण पाने वाली जातियों की संख्या में बढ़ोत्तरी तो कर दी जाती है, लेकिन आज तक किसी भी जाति को इससे बाहर नहीं किया जाता हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि आरक्षण लागू करते हुए हर 10 साल में आरक्षण की समीक्षा करने का प्रावधान किया गया था, लेकिन यह कार्य किसी ने भी आज तक नहीं किया।

बता दे कि हरियाणा में आरक्षण के लिए मंडल कमीशन की रिपोर्ट को साल 1995 में अपनाया गया और मंडल कमीशन की इसी रिपोर्ट के आधार पर शेड्यूल ए और शेड्यूल बी तैयार किया गया था। जिसमें कहा गया था कि 20 वर्षों में पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण की समीक्षा की जाए। याचिकाकर्ता ने कहा कि मंडल कमीशन आयोग की रिपोर्ट को 15 साल बाद 1995 में अपनाया गया था, ऐसे में 2020 में पिछड़े वर्ग को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा हो चाहिए थी। परंतु वर्ष 2017 तक 37 बीत गए, लेकिन किसी ने भी समीक्षा के लिए किसी तरह का प्रयास नहीं किया।

याचिकाकर्ता ने कहा कि एनसीबीसी और इंदिरा साहनी मामले में आरक्षण व्यवस्था के लिए आंकड़े एकत्रित करने और समीक्षा करने के लिए पूरी प्रकिया को स्पष्ट किया है, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने हितों को साधने के लिए इसे अपनाने का प्रयास ही नहीं किया। इतना ही नहीं वर्ष 1993 में कंबोज कमीशन वर्ष 1999 में गुरनाम सिंह कमीशन बनाया गया इन सभी में भी कुछ जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने की बात तो कहीं गई, लेकिन आंकड़ों के आधार पर किसी भी जाति को बाहर करने की बात नहीं की गई। याची ने कहा कि 1951 से लेकर आज तक केवल जातियों को शामिल ही किया गया हैं।

स्नेहाचंल चैरिटेबल ट्रस्ट की याचिका पर हाईकोर्ट ने याची से कहा कि इस बारे में क्या किया जा सकता है, जिस पर याची ने कहा कि नए सिरे से आंकड़े एकत्रित करते हुए यह देखा जाना चाहिए कि किस जाती को आरक्षण की जरूरत है या किसे नहीं। उदाहरण के तौर पर याचिकाकर्ता ने कहा कि 1951 में 71 जातियों को पिछड़ा वर्ग के तहत आरक्षण का लाभ प्राप्त हुआ था, क्या इनमें से एक भी जाति आगे नहीं बढ़ पाई हैं।

+ posts

Kapil reports for Neo Politico Hindi.

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

अंबेडकर के अनुयायियों ने करणी सेना अध्यक्ष के साथ की मारपीट, औरंगजेब की कब्र पर फूल चढ़ाने का किया था विरोध

Next Story

धर्म विशेष के युवक ने गाय के साथ किया कुकर्म, वीडियो वायरल, पुलिस ने किया मामला दर्ज

Latest from कुछ नया आया क्या

यूपी- ब्राम्हणों पर जातिगत टिप्पणी करने के मामले में थानेदार पर गिरी गाज, एसएसपी ने किया लाइन अटैच

बदायूं- पंडितों के खिलाफ जातिगत टिप्पणी का ऑडियो वायरल होने और ब्राह्मण समाज के लोगों द्वारा…

यूपी: ब्राह्मण युवती को पत्नी बनाने के लिए दलित व्यक्ति ने दिया झूठा आवेदन, हाईकोर्ट ने लगाया 50 हजार का जुर्माना

लखनऊ- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले की सुनवाई करते हुए एक दलित व्यक्ति पर…