संस्कृत में प्राचीन विज्ञान पढ़ाएगा IIT इंदौर, विश्व के 750 विद्वानों ने भी दिखाई रुचि !

इंदौर (MP): प्राचीन विज्ञान को आधुनिक युग में समझने के लिए IIT संस्थान ने रोचक शुरुआत की है।

देवभाषा संस्कृत के लिए एक बेहद दिलचस्प खबर आई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आईआईटी इंदौर ने 15 दिनों का एक नया कोर्स शुरू किया है जिसमें दुनियाभर के साढ़े सात सौ से ज्यादा लोग शामिल हो रहे हैं।

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक महान गणितज्ञ भास्कराचार्य के गणितीय ग्रंथ लीलावती सहित भारत के पुरातन वैज्ञानिक ग्रंथों को संस्कृत भाषा में पढ़ने और समझने के लिए आईआईटी, इंदौर ने 15 दिन का एक विशेष ऑनलाइन कोर्स शुरू किया है।

गणितीय ग्रंथ लीलावती की रचना महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने अपनी बेटी के नाम पर की थी। संस्कृत भारती, मध्य क्षेत्रम सहित आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी इंदौर के विषय विशेषज्ञ इस कोर्स के तहत लोगों को भारत के पुरातन साहित्य का ज्ञान संस्कृत में दे रहे हैं। 22 अगस्त से शुरू हुए इस पाठ्यक्रम के लिए दुनियाभर के 750 से अधिक लोगों ने दिलचस्पी दिखाई। इस पाठ्यक्रम का पहला संस्करण गांधी जयंती 2 अक्टूबर को खत्म होगा।

आईआईटी संस्थान ने संस्कृत में धातु विज्ञान, खगोल विज्ञान, दवाओं और पौधों के विज्ञान को पढ़ाने के लिए 15 दिनों का कार्यक्रम तैयार किया है। इस पाठ्यक्रम के तहत छात्र संस्कृत में शास्त्रीय भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथों का अध्ययन करने के साथ ही साथ और समझ भी सकते हैं।

आईआईटी, इंदौर के कार्यवाहक निदेशक, प्रोफेसर नीलेश कुमार जैन ने शुक्रवार को पाठ्यक्रम का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि “संस्कृत, एक प्राचीन भाषा है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अपना स्थान ढूढ़ रहा है और बाद में यह भविष्य की भाषा बन जाएगा।”

संस्थान में बायोसाइंसेज और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और इस पाठ्यक्रम के को-ऑर्डिनेटर प्रोफेसर गंती एस मूर्ति ने बताया कि “प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ग्रंथों पर चर्चा के लिए हमेशा एक अनुवादक की आवश्यकता होती है और अनुवाद में बहुत बार महत्वपूर्ण पहलुओं या बारीकियों को खो दिया जाता है।”

मूर्ति ने बताया कि स्तर दो के लिए प्रतिभागियों की तैयारियों का मूल्यांकन करने के लिए एक योग्यता परीक्षा आयोजित की जाएगी। जो पहले से ही संस्कृत से अच्छी तरह वाकिफ हैं वे तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ सीधे दूसरे चरण में जा सकते हैं। संस्कृत में विचार-विमर्श में भाग लेना सभी छात्रों के लिए अनिवार्य है, और जो लोग इसमें फेल होंगे उन्हें पाठ्यक्रम पूरा करने का प्रमाणपत्र नहीं मिलेगा।

उन्होंने बताया कि जिन लोगों ने दाखिला लिया है, उनमें से 30 फीसदी प्रभावशाली पेशेवर हैं। संस्थान के अधिकारियों का कहना है कि लगभग 50% स्नातक और परास्नातक के छात्र हैं, जिनमें पीएचडी स्कॉलर और बाकी लोग हैं।

उन्होंने कहा कि “पारंपरिक इंडिक वैज्ञानिक ग्रंथों में से अधिकांश जल संसाधनों का स्थाई प्रबंधन, कृषि, गणित, धातु, खगोल, चिकित्सा और पादप विज्ञान सहित अर्थशास्त्र जैसे भारत के अधिकांश पुरातन ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। इन ग्रंथों के अध्ययन के लिए संस्कृत को समझना भारत की वैज्ञानिक विरासत को संरक्षित करने और आगे बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है।”

आईआईटी-इंदौर ने इस पाठ्यक्रम के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया है, जिसमें संस्कार भारती के प्रमोद पंडित, मयूरी फड़के और प्रवीण वैष्णव पहले भाग के इंस्ट्रक्टर हैं। दूसरे भाग में टीम के तकनीकी विशेषज्ञ आईआईटी-बॉम्बे के प्रोफेसर के रामसुब्रमण्यम और डॉ. के महेश हैं।


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