नई दिल्ली: दिल्ली की सीमाओं में लगभग 45 दिन से चल रहे किसान आंदोलन के बीच अब कृषि कानूनों के बजाय शिक्षा नीति 2020 खत्म करने की माँग उठ गई।
दरअसल उमर खालिद व शरजील इमाम जैसे दंगा आरोपियों की रिहाई के पोस्टर लगाकर विवादों में रहे भारतीय किसान यूनियन एकता उग्राहां के बैनर तले कल कथित युवा छात्रों का कारवां टिकरी बॉर्डर (पकोड़ा चौक स्टेज) दिल्ली मोर्चा में आया।
किसान यूनियन के सोशल मीडिया पेज पर उपलब्ध जानकरी के अनुसार पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन (शहीद रंधावा) और नौजवान भारत सभा की अगुवाई में युवाओं और छात्रों ने हाथों में तख्तियां लेकर नारे लगाए। इसमें नई शिक्षा नीति रद्द करें, रिहा कथित छात्र कार्यकर्ताओं, कथित बुद्धिजीवियों और लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं को रिहा करें शिक्षा के निजीकरण को रोकें।
मानवाधिकार दिवस पर उमर खालिद शरजील के लगे थे पोस्टर:
10 दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस पर नक्सलियों के साथ संबंध में कड़े यूएपीए के तहत आरोपी बनाए गए किए गए वरवारा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा के अलावा दिल्ली दंगे उकसाने में बंद उमर खालिद शरजील इमाम सहित 20 से अधिक आरोपियों की तस्वीरें टिकरी सीमा के पास एक मंच पर लगाई गई थी। कई मानवाधिकार समूहों ने भी भाग लिया था।
पहले से थी तैयारी:
बीकेयू (एकता-उगराहां) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष झंडा सिंह जेठुके ने कहा था “हम बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए आवाज उठाने के लिए टिकरी सीमा के पास बाबा बंदा सिंह नगर में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस मनाएंगे। पूरे आंदोलन में इन कैदियों की रिहाई की मांग लगातार उठाई जाती रही है। मोदी सरकार फासिस्ट एजेंडा चला रही है। एक तरफ यह अडानी और अंबानी को बढ़ावा दे रहा है और दूसरी तरफ यह बुद्धिजीवियों और गतिविधियों को जेल में डाल रहा है। भीमा कोरेगांव व दिल्ली दंगे भड़काने के लिए यूएपीए के तहत लगभग दो दर्जन कार्यकर्ताओं को बुक किया गया है।”
बीकेयू (उग्राहां) के वकील और समन्वयक एन के जीत ने कहा “जेलों में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को रिहा करने के लिए पहले दिन से ही यह हमारी मांगों का हिस्सा रहा है। सरकार ने कहा है कि शहरी नक्सलियों, कांग्रेस और खालिस्तानियों द्वारा किसान आंदोलन को उकसाया गया है। शहरी नक्सल लोगों पर मुकदमा चलाने का एक बहाना है। पंजाब में, लोगों को राज्य आतंकवाद और आतंकवादियों के बीच फंसाया जाता है। नक्सलवाद ने आदिवासी लोगों को उनके अधिकारों का दावा करने में मदद की है।”