कर्नाटक: हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने बुधवार को कोप्पल जिले के गंगावती तालुक के मरकुंबी गांव में अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों के खिलाफ एक दशक पुराने अत्याचार मामले में दोषी ठहराए गए 101 में से 99 लोगों को जमानत दे दी। इस मामले में न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार और न्यायमूर्ति टी.जी. शिवशंकर गौड़ा की खंडपीठ ने दोषियों की अपीलें भी स्वीकार की हैं, जिनमें वे अपने दोषसिद्धि और सजा को चुनौती दे रहे हैं।
मरकुंबी अत्याचार मामला: 101 दोषियों में से 98 को उम्रकैद की सजा
मरकुंबी गांव का यह मामला दस साल पहले का है, जिसमें अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव के गंभीर आरोप लगे थे। इस मामले में लंबे समय तक चली कानूनी लड़ाई के बाद, अक्टूबर 2024 में कोप्पल के प्रधान जिला और सत्र न्यायालय ने 117 आरोपियों में से 101 को दोषी करार दिया था। इनमें से 98 दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई थी और प्रत्येक पर ₹5,000 का जुर्माना लगाया गया था, जो कि अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत थी। वहीं, अनुसूचित जाति और जनजाति के तीन अन्य दोषियों को पांच साल की सजा और ₹2,000 का जुर्माना लगाया गया था।
बचाव पक्ष के कानूनी तर्क
जमानत की मांग करने वाले 99 याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता आनंद कोल्ली और सात अन्य वकीलों की टीम ने अदालत में कई कानूनी मुद्दे उठाए। उन्होंने एफआईआर दर्ज करने में देरी, पहचान परेड में अनियमितताएं और सुनवाई के दौरान अन्य प्रक्रियात्मक खामियों का हवाला दिया। वकील कोल्ली ने तर्क दिया कि ये प्रक्रियात्मक खामियां सजा की वैधता पर सवाल खड़े करती हैं और सजा में सुधार की आवश्यकता है।
जमानत के लिए शर्तें और आवश्यकताएं
बचाव पक्ष के तर्कों पर विचार करने के बाद, हाईकोर्ट की पीठ ने शर्तों के साथ 99 दोषियों को जमानत प्रदान की। जमानत की शर्तों के अनुसार, प्रत्येक दोषी को ₹50,000 का बांड और एक व्यक्ति की जमानत प्रस्तुत करनी होगी। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि दोषी सभी जमानत शर्तों का सख्ती से पालन करें और किसी भी शर्त का उल्लंघन होने पर जमानत रद्द की जा सकती है।
विशेष मामले: मंजूनाथ और रामन्ना भोवी
101 दोषियों में से दो मामलों को विशेष रूप से देखा गया। पहले दोषी मंजूनाथ ने जमानत के लिए आवेदन नहीं किया था, इसलिए वह हिरासत में ही रहेगा। वहीं, एक अन्य दोषी रामन्ना भोवी की मूल फैसले के बाद मृत्यु हो गई, जिसके कारण उनके लिए जमानत प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं रही। धारवाड़ बेंच ने अपने निर्णय में इन विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शेष 99 दोषियों के लिए ही जमानत आदेश जारी किया। कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला एक लंबित मामले में महत्वपूर्ण कदम है, जिसे राज्य के कानूनी विशेषज्ञ और न्याय सुधार के समर्थक करीब से देख रहे हैं। अदालत द्वारा दोषियों की अपीलों को स्वीकार किए जाने से अब प्रारंभिक दोषसिद्धि की आगे की न्यायिक समीक्षा का मार्ग प्रशस्त होता है, जिसका कर्नाटक के अन्य समान मामलों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।