नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, भारत के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए. के. मिश्रा ने कहा कि किसी भी आदिवासी को भूमि अधिकारों से संबंधित उसके दावे के निपटारे के बिना बेदखल नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पहले ही आ चुका है। न्यायमूर्ति मिश्रा ने आगे आश्वासन दिया कि आयोग इस बात पर गौर करेगा कि वह अपनी भूमि पर आदिवासी लोगों के दावे और उसके वितरण पर नीति के संबंध में सबसे अच्छा क्या कर सकता है।
वह कोविड-19 के दौरान मानवाधिकारों के मुद्दों और भविष्य की प्रतिक्रियाओं पर मानवाधिकार रक्षकों और नागरिक समाजों के साथ आयोग द्वारा कल आयोजित एक वेबिनार की अध्यक्षता कर रहे थे।
उन्होंने यह भी कहा कि आयोग मानवाधिकार के नजरिए से विभिन्न कानूनों की समीक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। मिश्रा ने कहा कि आयोग का इरादा मानव अधिकार रक्षकों और नागरिक समाज संगठनों के साथ अपनी बातचीत जारी रखने का है ताकि मानव अधिकारों के प्रचार और संरक्षण के प्रयासों में सहयोग किया जा सके, ऐसे समय में जब देश को कोविड-19 महामारी के रूप में एक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। बैठक में एनएचआरसी के सदस्य, न्यायमूर्ति पी. सी. पंत, डॉ. डी. एम. मुले, राजीव जैन और वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए।
इससे पहले, बिंबाधर प्रधान, महासचिव, एनएचआरसी ने चर्चा शुरू करते हुए, कोविड -19 महामारी की पृष्ठभूमि में मानव अधिकारों के विभिन्न विषयगत मुद्दों पर आयोग द्वारा आयोजित बातचीत की श्रृंखला पर प्रकाश डाला। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि मानव अधिकार रक्षकों के साथ बातचीत का महत्व है। उन्होंने कहा कि एनजीओ, एचआरडी और सीएसओ केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आयोग द्वारा जारी विभिन्न कोविड-19 एडवाइजरी के कार्यान्वयन का जमीनी मूल्यांकन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इनमें 2020 में 12 एडवाइजरी और 2021 में 7 एडवाइजरी शामिल हैं, जो कोविड-19 महामारी और भविष्य की प्रतिक्रियाओं के दौरान समाज के विभिन्न वर्गों के मानव अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।