बरसो से बिना सर पैर की बात करने वाले दिलीप मंडल की एक बस यही काबिलियत है कि वह कुछ भी लिखते है तो उसपर उन्हें उलटे दस गालिया मिलती है। मिलनी भी चाहिए क्यूंकि इन्ही से इनका धंधा भी चल रहा है। वैसे तो हमारी टीम ने मंडल साहब के कई ऐसे ट्वीट पर रिपोर्ट बनाई थी जो उनकी तुच्छ मानसिकता को दिखाने का कार्य कर रहीं है लेकिन हाल ही में छपा दिलीप मंडल का एक लेख उनके दिमाग की भांति बिलकुल लुल ही दिखाई पड़ रहा है।
दिलीप मंडल बाबा साहब की आड़ लेते हुए जितनी गालिया प्रभु राम को दे सकते थे उन्होंने दी। दे भी क्यों न इससे इनका धंधा जो चलता है। नव बुद्धिस्ट ताली बजाये थकते नहीं है और दिलीप मंडल उन्हें अपने दिमाग की तुच्छ महफ़िल में यु बनाये रखने में लालायित रहते है।
दिलीप मंडल ने प्रभु श्री राम पर बेहद अभद्र टिप्पणी करते हुए लिखा कि राम एक कायर राजा थे। जिनका शासन एक प्रतिगामी, अनैतिक, जातिवादी और स्त्रीविरोधी शासन के रूप में सामने आता है। उन्होंने आंबेडकर की बातो को गाँधी से महान बताते हुए ऐसी तुच्छ बाते लिख डाली।
उन्होंने लिखा कि आंबेडकर लिखते हैं– ‘सीता ने क्रूरता का व्यवहार करने वाले राम के साथ लौटने की बजाए मर जाना बेहतर समझा. ये सीता के जीवन की त्रासदी है और भगवान राम का ये अपराध है.’
वहीं अभद्रता व अश्लीलता की सीमाएं लांघते हुए दिलीप मंडल ने कहा कि आंबेडकर रामायण के हवाले से बताते हैं कि राम ने सीता से कहा कि ‘तुम्हारे अपहर्ता को युद्ध में परास्त करके मैंने तुम्हें जीता है. मैंने अपना स्वाभिमान पुन: प्राप्त कर लिया है और शत्रु को सजा दे दी है. ये सब मैंने तुम्हारे लिए नहीं किया है…मुझे तुम्हारे चरित्र पर शक है. रावण के साथ तुम्हारे संबंध जरूर बने होंगे. मैं तुम्हें इसकी इजाजत देता हूं कि तुम जहां चाहो, चली जाओ. मुझे तुमसे कोई लेना देना नहीं है.’
दिलीप मंडल ने या तो राम का चरित्र जाना नहीं है या तो वो खुद ऐसे माहौल में पले बढे है। उनकी और से की गयी बाते साफ़ दर्शा रही है कि उन्हें भूमि पूजन की कितनी पीड़ा पहुंची है। वहीं बाली वध पर भी दिलीप मंडल कुछ भी श्याही थूक उठे।
उन्होंने बाली हत्या पर अपना दर्द आंबेडकर के माध्यम से लिखा कि ‘बाली की हत्या राम के चरित्र पर सबसे बड़ा धब्बा है. इस अपराध के लिए राम को किसी ने उकसाया नहीं था. राम से बाली का कोई झगड़ा भी नही था. ये एक कायरतापूर्ण कार्य था क्योंकि बाली निहत्था था. ये योजनाबद्ध तरीके से की गई हत्या थी.’
या तो बाबा साहब को रामायण समझ में नहीं आई और या तो दिलीप मंडल शब्दों में झोल कर गए है। खैर रामायण की बारीकियां समझने के लिए नास्तिक सोच को उखाड़ फेकना होता है जो दोनों में नहीं दिखती। दिलीप मंडल की जानकारी के लिए बता दे कि बाली को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि वह जिससे युद्ध करेगा उसके सामने वाले की आधी शक्तिया उसमे आ जाएगी व उस व्यक्ति से तभी मारा जायेगा जब शक्ति और शक्तिमान अलग हो। आपकी समझ के लिए जैसे विष्णु(शक्तिमान) और माता लक्ष्मी(शक्ति), शिव(शक्तिमान) व माता पार्वती(शक्ति), दोनों ही केस में बाली की मृत्यु के लिए शक्ति और शक्तिमान अलग करना पड़ता जोकि असंभव था।
साथ ही बाली ने पूर्व में एक शादी शुदा महिला का अपराह्न कर उसका बलात्कार भी किया था। प्रभु राम खुद विष्णु भगवान के रूप है इसलिए उनमे शक्तिया भी अनंत है। यदि दिलीप मंडल ने गणित पढ़ी होगी तो उन्हें शायद पता होगा कि अनंत को दो से भाग करने पर भी अनंत आता है। इस कारण अगर प्रभु राम बाली के सामने चले भी जाते तो भी राम उसका वध कर देते। परन्तु इस वध से ब्रह्मा जी के उस वरदान का औचित्य ख़त्म हो जाता जो भगवान करना नहीं चाहते थे। वहीं जब ब्रह्मा जी ने बाली को यह वरदान दे दिया तो वह सर्वप्रथम विष्णु भगवान के पास ही इस समस्या का हल मांगने गए थे। जिसे खुद विष्णु जी ने अवतरित होकर पूरा किया था। वहीं बलात्कार करने वाला बाली खुद मृत्यु दंड का भागी था जिसे प्रभु श्री राम ने उसके वध से पूर्ण कर दिया था। खैर प्रभु की लीला नव बुद्धो की समझ से परे है।
आगे दिलीप मंडल लिखते है कि एक अच्छे वकील के तौर पर आंबेडकर ने सुग्रीव के खिलाफ तर्क दिए और बाली के पक्ष का बचाव किया। उन्होंने लिखा कि बाली जब गुफा के अंदर हुए युद्ध में मायावी को मारने के बाद अपने राज में लौटते हैं तो देखते हैं कि सुग्रीव उनकी जगह राजा बन बैठा है. ये दो कारणों से गलत था. सुग्रीव को इस बात की जांच करनी चाहिए कि राजा बाली क्यों नहीं लौटे और दो, जब बाली का पुत्र अंगद राजा के बनने के योग्य था तो सुग्रीव खुद क्यों राजा बन बैठा.
यहाँ वकील साहब को मामला ही नहीं पता है कि वध क्यों किया गया था और वकील साहब मामले के निपटारे के दो कारण गिना रहे है। क्या किसी बलात्कारी व क्रूर शासक के वध पर किसी वकील के आपने ऐसे तर्क देखे है ? इसलिए कहते है अधूरा ज्ञान बेहद घातक होता है।
आगे सीता माता को लेकर भी दिलीप मंडल ने जहर उगलना चाहा जिसको कई विद्वानों द्वारा पहले ही समझाया जा चूका है। उसके लिए भी लोगो को बुद्धिमता की आवश्यकता होती है।
राम राज्य व गांधी को आंबेडकर से निचा दिखाने का जो खेल दिलीप मंडल ने खेला है उससे आप समझ सकते है कि यह जानबूझकर अंबडेकर बनाम गांधी की लड़ाई को पनपा रहे है। गांधी का योगदान आंबेडकर से कही अधिक था।
साथ ही आंबेडकर कोई भगवान नहीं थे और न ही उनके ऐसे लेखो के कारण उनका गुणगान किया जा सकता है। आज उन्हें हिन्दू धर्म के विरुद्ध खड़ा करने की साजिश चल रही जिसे कोई भी राज नेता नहीं बोलता है। अगर आंबेडकर ऐसे मुद्दों पर गलत थे तो थे। संक्रिण मानसिकता से भरे दिलीप मंडल आंबेडकर के लेखो को आधार बनाते हुए राम राज्य को गालिया दे रहे है। आपको हमें चाहिए की आंबेडकर व दिलीप मंडल दोनों के ऐसे लेखो का भरपूर विरोध कर उन्हें प्रतिबंधित कराने के लिए सरकार से मांग करनी चाहिए। खैर बाबा साहब की सच्चाई दिलीप मंडल द्वारा बताने के लिए उनका शुक्रिया।
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Why Sharma Shubham is writing this piece?
Shubham Sharma is an author at Asia Times. He is a Delhi based journalist mostly reports on foreign affairs and international relations. He has also been worked for the Courier International(A Paris based popular french media organization), Modern Diplomacy( EU based foreign affairs weekly magazine), Foreign Policy Times, and Jihad Watch(US-based think tank). Follow him on twitter @ShubhamSharm11