मथुरा: कहते हैं कि गरीबी जाति देखकर नहीं आती।गरीब कोई भी हो सकता है चाहे जाति दलित हो या सवर्ण। गरीबी सबके लिए अभिशाप होती है। यही सोचकर सरकार ने गरीबी के नाम बहुत सारी योजनाएं चला रखी है मगर सभी को जातियों में बांटकर। बहुत सारे दलित और ओबीसी परिवार इन सरकारी योजनाओं की सहायता से गरीबी की अवस्था से उबर रहे हैं मगर कल की गरीबी झेल रहा सामान्य समाज आज भी गरीबी के सबसे नीचे पायदान पर जीने को मजबूर है जिसे शायद जीवन ही कहना अनुचित होगा। आज हम आपको ऐसे ही एक बच्चे से मिलवा रहे है जोकि महज एक स्टील की प्लेट के सहारे जिंदगी जीने को मजबूर है। बच्चा कई कई दिन बिना खाने के गुजार देता है लेकिन कोई भी सरकारी योजना उसे मजदूरी से हटा स्कूल के दरवाजे तक नहीं पंहुचा पा रही है।
घटना मथुरा के कस्बा शेरगढ़ मोहल्ले की है जहां एक 12 साल का बच्चा दो वक़्त के खाने के लिए मजदूरी करता है। खुले आसमान के निचे कड़कड़ाती ठंड में सोने वाला दानी शर्मा जब 2 वर्ष का था तो उसके पिता चल बसे थे। माँ ने भी दूसरी शादी कर ली, जिसके बाद से दानी शर्मा अकेले अपनी जिंदगी काट रहा है। दानी शर्मा रोजाना की तरह प्लेट पर अपनी रोटियों को सेंक रहा था। दानी से जब हमने पूछा कि पेट भरने के लिए क्या करते हो तो उसने बताया कि वह हर दूसरे दिन मजदूरी करने जाता है। ज्यादा काम नहीं कर पाता इसलिए रोजाना मजदूरी नहीं कर सकता है। दानी शर्मा एक वक़्त की रोटी को भी दो टुकड़ो में बाँट कर खाता है।
पिता ने एक घर बनवाया था लेकिन वक़्त के साथ वह भी खंडर हो चूका है। घर की हालत देख कर लगता है कि वह किसी भी पल नीचे गिर जायेगा। जिस कारण दानी बाहर सोने को मजबूर है। खंडर घर के चारो ओर झाडिया उग आई है जिसकी दीवारे हर जगह आपको टूटी मिल जाएँगी।
स्कूल जाने के प्रश्न पर दानी ने बताया कि वह स्कूल कैसे जाए। खाने को पैसा नहीं है। दो समय की रोटी की व्यवस्था नहीं हो पाती है। स्कूल में जाति की वजह से किसी भी प्रकार का पैसा भी नहीं मिलता है। दानी के अनुसार उसे कोई भी सरकारी सहायता या योजनाओ का लाभ नहीं मिला है।
दो बड़ी बहनो की हो चुकी है शादी, खुद प्लेट पर बनाता है रोटी
2 वर्ष की अवस्था में ही पिता दीनदयाल शर्मा का साया सर से उठ जाने के बाद उसकी दो बड़ी बहनो की शादी लोगो ने पैसे जोड़कर कर दी थी। जिसके बाद माँ ने किसी के साथ शादी कर ली। तबसे दानी को अकेले रहने पर मजबूर होना पड़ा है। खेलने पढ़ने के समय में मजदूरी कर स्टील की प्लेट पर रोटी सेंकता दानी न उम्मीदों के साथ अपनी ज़िन्दगी को जी रहा है।
पिता को दीया जलाकर पूजता है दानी
दानी के घर में खान को बेशक अन्न का दाना न हो लेकिन अपने पिता से प्रेम उसकी आँखों में झलकता है। दानी अपने पिता की तस्वीर के सामने दीया जलाकर उनकी पूजा करता है। दो वर्ष की आयु में पिता का निधन हो गया था इसलिए पिता की बाते याद नहीं है। फिर भी दानी उनकी तस्वीर के सामने रोजाना दीया प्रज्वलित करता है।
दानी ने कहा ‘साहब बस एक कमरा बनवा दो’
बातो ही बातो में भावुक हुए दानी ने हमसे अपनी व्यथा जाहिर करते हुए बताया कि उसे मदद के रूप में बस एक कमरा चाहिए जहां वह अपना सर छुपा सके। 12 वर्ष की उम्र में मजदूरी कर पेट पाल रहे दानी की मज़बूरी न तो सरकार ही समझ रही और न ही प्रशासन।
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