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राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’ जैसे शब्द जातिसूचक नहीं, SC/ST एक्ट के आरोप खारिज

जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने 2011 के एक मामले में अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) के तहत आरोप खारिज करते हुए कहा कि ‘भंगी’, ‘नीच’, ‘भिखारी’ और ‘मांगनी’ जैसे शब्द जातिसूचक नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन शब्दों का इस्तेमाल करने का इरादा किसी व्यक्ति को उसकी जाति के आधार पर अपमानित करने का नहीं था। हालांकि, कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की कुछ धाराओं के तहत मामले को बरकरार रखा।

क्या है मामला?

यह मामला जनवरी 2011 का है, जब जैसलमेर में सरकारी अधिकारी सार्वजनिक भूमि पर कथित अतिक्रमण की जांच करने गए थे। आरोप है कि जांच के दौरान चार व्यक्तियों ने अधिकारियों के काम में बाधा डाली और उन्हें अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया। इस घटना के बाद पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 353 (सरकारी कार्य में बाधा डालना), 332 (चोट पहुंचाना), 34 (सामूहिक इरादा) और SC/ST एक्ट की धारा 3(1)(X) के तहत मामला दर्ज किया। हालांकि, पुलिस जांच में आरोप साबित नहीं हो सके और पुलिस ने नकारात्मक रिपोर्ट पेश की। इसके बावजूद, शिकायतकर्ता द्वारा विरोध याचिका दायर की गई, जिसके बाद ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय किए। इसके खिलाफ आरोपी राजस्थान हाईकोर्ट पहुंचे।

कोर्ट ने क्यों खारिज किए SC/ST एक्ट के आरोप?

हाईकोर्ट ने पाया कि जिन शब्दों का उपयोग किया गया था, वे जातिसूचक नहीं हैं। न्यायमूर्ति बिरेन्द्र कुमार ने कहा कि आरोपियों को शिकायतकर्ता की जाति की जानकारी नहीं थी और घटना में ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्य को अपमानित करने का इरादा रखा हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि घटना के समय कोई स्वतंत्र गवाह मौजूद नहीं था, जो यह पुष्टि कर सके कि यह घटना सार्वजनिक स्थान पर हुई। शिकायतकर्ता और उनके सहकर्मी ही इस मामले के गवाह थे।

आईपीसी के तहत आरोप क्यों बरकरार?

हालांकि, कोर्ट ने पाया कि सरकारी अधिकारियों के कर्तव्य निर्वहन में बाधा डालने और उन्हें चोट पहुंचाने के आरोपों पर पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। न्यायालय ने कहा कि आरोपियों ने अधिकारियों को उनकी ड्यूटी करने से रोका और इसी कारण आईपीसी की धारा 353 और 332 के तहत आरोपों पर ट्रायल जारी रहेगा।

कानूनी पक्ष और पक्षकारों की दलीलें

आरोपियों की ओर से अधिवक्ता लीला धर खत्री ने दलील दी कि आरोप झूठे हैं और SC/ST एक्ट के तहत लगाए गए आरोपों का कोई आधार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपियों को शिकायतकर्ता की जाति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वहीं, राज्य सरकार की ओर से लोक अभियोजक सुरेंद्र बिश्नोई ने आरोपों का बचाव करते हुए कहा कि आरोपियों ने सरकारी अधिकारियों को उनके कार्य में बाधा पहुंचाई और उनके साथ दुर्व्यवहार किया।

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