वाराणसी: काशी जिसे साहित्य का गढ़ कहा जाता है, आज गूंगी सी है। 80 करोड़ की संपत्ति के मालिक और 400 किताबों के रचनाकार श्रीनाथ खंडेलवाल का अंतिम संस्कार किसी अपने ने नहीं किया। यह कहानी सिर्फ एक साहित्यकार की मृत्यु की नहीं, बल्कि परिवार और समाज की संवेदनहीनता का प्रतिबिंब है। उनकी अंतिम यात्रा में कोई परिजन नहीं आया। अंततः अमन कबीर ने बेटा बनकर उनका अंतिम संस्कार किया।
“पिता को मुखाग्नि देने जैसा अनुभव”: अमन कबीर
अमन कबीर, काशी के प्रसिद्ध समाजसेवी, ने खंडेलवाल जी का अंतिम संस्कार किया। अमन ने भावुक होकर कहा, “जब मैंने उन्हें मुखाग्नि दी, तो ऐसा लगा जैसे मैं अपने पिता को अंतिम विदाई दे रहा हूं।” अमन ने बताया कि खंडेलवाल जी के बेटे और बेटी को उनकी मृत्यु की सूचना दी गई, लेकिन दोनों ने आने से मना कर दिया। बेटी ने नौ कॉल और एक संदेश का भी जवाब नहीं दिया। अमन ने मोहनसराय घाट पर खंडेलवाल जी का अंतिम संस्कार किया और उनका पिंडदान भी करने का निर्णय लिया।
वृद्धाश्रम में बिताए आखिरी दिन
17 मार्च 2024 को श्रीनाथ खंडेलवाल काशी कुष्ठ सेवा संघ वृद्धाश्रम, सारनाथ पहुंचे। यहाँ उन्होंने नौ महीने बिताए। आश्रम के केयर टेकर रमेशचंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि खंडेलवाल जी को किडनी और हार्ट की समस्याएं थीं। इन समस्याओं के बावजूद, वह नियमित रूप से सुबह-शाम स्नान करते और अपनी लेखनी में डूबे रहते। इन नौ महीनों में उन्होंने पाँच किताबें लिखीं, जो अब छपने जा रही हैं। हालांकि, उनकी महत्वाकांक्षी पुस्तक “नरसिंह पुराण” अधूरी रह गई।
अस्पताल में हुई विदाई
25 दिसंबर को खंडेलवाल जी की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें दीर्घायु अस्पताल में भर्ती कराया गया। 28 दिसंबर की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। आश्रम प्रबंधन ने उनके परिजनों को सूचना दी। बेटा यह कहते हुए नहीं आया कि वह वाराणसी में नहीं है। बेटी ने भी कोई जवाब नहीं दिया। इस दर्दनाक उपेक्षा के बीच अमन कबीर ने उनका अंतिम संस्कार किया। खंडेलवाल जी के सहयोगी अमृत अग्रवाल अक्सर उनकी मदद के लिए आगे आते थे। अमृत ने दो बार खंडेलवाल जी के अस्पताल का खर्च उठाया और आश्रम में उनकी जरूरतों का ख्याल रखा। बताया जाता है कि अमृत के पिता खंडेलवाल जी के वकील थे। अमृत ही उन्हें लिखने की सामग्री और पैसे देते थे। हालांकि, इस मदद के पीछे उनका व्यक्तिगत कारण अब भी अज्ञात है।
काशी का मौन: साहित्यकार को श्रद्धांजलि तक नहीं
400 किताबें लिखने वाले साहित्यकार के निधन पर काशी की चुप्पी विचलित करने वाली है। किसी साहित्यकार, संस्था या परिवारजन ने श्रद्धांजलि नहीं दी। यह घटना काशी के साहित्यिक और सामाजिक परिवेश पर गंभीर प्रश्न उठाती है। खंडेलवाल जी ने दैनिक भास्कर को दिए अपने अंतिम इंटरव्यू में कहा था, “पुराना कुछ मत पूछिए। अब नया खंडेलवाल है, जो सिर्फ किताबें लिख रहा है। जब तक सांस है, कलम चलती रहेगी।” खंडेलवाल जी ने अपने जीवनकाल में 400 से अधिक किताबें लिखीं। वृद्धाश्रम में बिताए समय के दौरान उन्होंने पाँच नई किताबें लिखीं, जो अब छपने जा रही हैं। लेकिन उनकी महत्वाकांक्षी परियोजना “नरसिंह पुराण” अधूरी रह गई। उनकी लेखनी ने उन्हें अमर बना दिया, लेकिन उनकी अंतिम समय की उपेक्षा समाज के लिए एक कठोर सबक है।