नई दिल्ली – देश की सर्वोच्च अदालत ने आरक्षण के मामले पर देश की राज्य सरकारों को नोटिस भेजा है।
जिसमें सुप्रीम कोर्ट जानना चाहती है कि क्या आरक्षण पर सीमा को मौजूदा 50 फीसदी से अधिक किया जा सकता है? या नहीं जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों की सरकारों को एक नोटिस भेजकर उसका जवाब मांगा है। जिसकी अगली सुनवाई 15 मार्च को होना हैं।
महाराष्ट्र में उठी मराठा आरक्षण के मामले को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जिसमें 15 मार्च से सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर रोजाना सुनवाई की बात कही है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मुद्दे पर सभी राज्यों को सुना जाना बेहद जरूरी है कि उनकी राय क्या हैं।
सुप्रीम कोर्ट में तर्क वितर्क
साल 2018 में राज्य सरकार ने नौकरी और शिक्षा में मराठाओं को 16% रिजर्वेशन देने का कानून बनाया था। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने 2019 के फैसले में इसे 16 प्रतिशत से कम कर दिया था। सुनवाई के तहत सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने कहा कि हम सहमत हैं कि इस मामले में जो भी विसंगतियां हो उसका असर सभी राज्यों पर पड़ेगा इसलिए उन्हें भी सुनना जरूरी है
सुप्रीम कोर्ट के वकील वेणुगोपाल ने कहा, अनुच्छेद 338 बी और 342 ए प्रत्येक राज्य की शक्ति को प्रभावित करते हैं। जैसा कि मैं समझता हूं कोई भी राज्य 2018 के बाद किसी वर्ग को आरक्षण नहीं दे सकता है। इसलिए महाराष्ट्र एक वर्ग को पिछड़े वर्ग के रूप में घोषित नहीं कर सकता हैैं।
वहीं, महाराष्ट्र सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस मामले में अनुच्छेद 342 ए की व्याख्या भी शामिल है। यह सभी राज्यों को प्रभावित करेगा, इसलिए सभी राज्यों को सुने बिना इस मामले में फैसला नहीं किया जा सकता।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.