नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा प्रणाली में बढ़ते जातीय भेदभाव और SC/ST छात्रों की आत्महत्याओं के मामलों पर गंभीर रुख अपनाया है। कोर्ट ने UGC को निर्देश दिया कि वह 2004 से 2024 तक के ऐसे मामलों का पूरा डेटा इकट्ठा करे। 115 आत्महत्याओं के चौंकाने वाले आंकड़ों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छात्रों पर जातीय भेदभाव के असर को रोकने के लिए प्रभावी और ठोस कदम उठाना अनिवार्य है।
शिक्षा के मंदिर में 115 आत्महत्याएं: चौंकाने वाले आंकड़े
सुप्रीम कोर्ट को 2004 से 2024 तक केवल IITs में हुई 115 आत्महत्याओं का डेटा पेश किया गया। ये आंकड़े बताते हैं कि देश की शीर्ष संस्थानों में भी जातीय भेदभाव की समस्या गहराई तक फैली हुई है। कोर्ट ने इसे “शिक्षा जगत का अक्षम्य दोष” बताते हुए, इस स्थिति में तत्काल सुधार के आदेश दिए। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की 2016 में हुई आत्महत्या और 2019 में डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या ने पूरे देश को हिला दिया था। दोनों मामलों में जातीय भेदभाव को मुख्य कारण बताया गया। सुप्रीम कोर्ट ने इन उदाहरणों का हवाला देकर शिक्षा प्रणाली में भेदभाव रोकने के लिए मजबूत नियम लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
UGC से समान अवसर सेल्स की रिपोर्ट तलब
2012 के ‘समानता के संवर्धन’ से जुड़े UGC रेगुलेशन के तहत बनाए गए Equal Opportunity Cells को अब सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट पेश करनी होगी। इन सेल्स को दी गई शिकायतों और उनकी जांच पर उठाए गए कदमों की विस्तृत जानकारी मांगी गई है। कोर्ट ने कहा कि इस समस्या का समाधान तभी होगा, जब संस्थान जवाबदेह बनेंगे।
समानता की ओर पहला कदम: भेदभाव रोकने का तंत्र बनाने की मांग
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि SC/ST छात्रों और शिक्षकों के खिलाफ जातीय भेदभाव खत्म करने के लिए ठोस नीतियां लागू की जाएं। शिकायतों को गंभीरता से लेने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई के लिए एक प्रभावी तंत्र बनाने का आग्रह किया गया है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सुनवाई नियमित रूप से होगी और प्रभावी समाधान सुनिश्चित किया जाएगा।