प्रयागराज: कुंभ मेले के दौरान एक चौंकाने वाली घटना ने समाज और प्रशासन को झकझोर दिया है। आगरा के एक दंपती ने अपनी नाबालिग बेटी को धार्मिक परंपरा के नाम पर जूना अखाड़े में ‘दान’ कर दिया। इस घटना को लेकर भारतीय दलित वर्ग संघ ने विरोध जताते हुए राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा है। संघ का आरोप है कि यह न केवल बच्ची के मूल अधिकारों का हनन है, बल्कि एक घातक सामाजिक संदेश भी देता है।
‘बेटी बचाओ’ के सपने को ठेस, नाबालिग बच्ची बनी परंपरा का शिकार
दलित वर्ग संघ ने इस घटना को सरकार के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान के खिलाफ एक कड़ी चुनौती बताया है। संघ के राष्ट्रीय सचिव साधू सरन आर्य ने इसे संविधान और कानून दोनों का उल्लंघन करार दिया। उन्होंने कहा कि यह मामला बच्चियों के अधिकारों और शिक्षा की अनिवार्यता पर सवाल खड़ा करता है। सरकार जहां बेटियों को शिक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने की बातें करती है, वहीं एक परिवार द्वारा अपनी नाबालिग बेटी को परंपरा के नाम पर ‘दान’ कर देना चिंताजनक है।
माता-पिता ने क्यों उठाया यह कदम?
इस विवाद का केंद्र आगरा निवासी संदीप सिंह धाकड़े और उनकी पत्नी रीमा हैं। इन दंपती ने अपनी बेटी को जूना अखाड़े को सौंप दिया, जो नागा साधुओं की एक प्रमुख संस्था मानी जाती है। यह दान नागा संन्यास परंपरा के तहत किया गया, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस निर्णय के लिए बच्ची बहुत छोटी और मानसिक रूप से अपरिपक्व है। दंपती के इस कदम ने बेटी के भविष्य को सवालों के घेरे में ला दिया है, क्योंकि नाबालिग होने के कारण वह अपनी मर्जी से कोई फैसला लेने में सक्षम नहीं है।
राष्ट्रपति से न्याय की गुहार: समाज ने उठाई कड़ी आवाज
इस घटना के विरोध में भारतीय दलित वर्ग संघ ने प्रयागराज के डीएम के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा है। इस ज्ञापन में बच्ची को जूना अखाड़े से तुरंत मुक्त कराने और उसे शिक्षा व सुरक्षा मुहैया कराने की मांग की गई है। संघ ने कहा है कि इस प्रकार की घटनाएं केवल सामाजिक तौर पर गलत नहीं हैं, बल्कि संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के खिलाफ भी हैं। ज्ञापन सौंपते समय संघ के राष्ट्रीय संयोजक अर्जक समाज गौरी शंकर, भीम युवा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।
सोशल मीडिया पर उबाल, सरकार के लिए बड़ा सवाल
इस घटना के सामने आने के बाद समाज में व्यापक आक्रोश फैल गया है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे भारतीय समाज की आधुनिकता और परंपरा के बीच संघर्ष का एक उदाहरण बताया है। सोशल मीडिया पर लोग सरकार और प्रशासन से कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सवाल उठाया जा रहा है कि बेटी के अधिकार और सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून और योजनाओं का क्या अर्थ है, यदि इस तरह की घटनाएं खुलेआम हो सकती हैं। यह घटना केवल एक बच्ची की सुरक्षा का मामला नहीं है, बल्कि यह समाज में ऐसे प्रचलनों की स्वीकार्यता को भी उजागर करती है। प्रशासन पर दबाव बढ़ रहा है कि बच्ची को जल्द से जल्द मुक्त कराया जाए और इस मामले में संलिप्त सभी दोषियों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएं।