हाथरस: 23 साल के लंबे अदालती मुकदमे का सामना करने के बाद, उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की एक एससी-एसटी अदालत ने एट्रोसिटी मामले के आरोपी 4 लोगों को बरी कर दिया है।
विशेष न्यायाधीश एससी-एसटी एक्ट त्रिलोक पाल सिंह की अदालत ने आरोपियों 1. हरप्रसाद पुत्र रनछोर 2. मूलचन्द्र पुत्र हरप्रसाद 3. दुलप पुत्र हरप्रसाद 4. ओमप्रकाश पुत्र हर प्रसाद को बरी करते हुए कहा है कि आवेदक अपनी चोटों की मेडिकल रिपोर्ट देने में विफल रहा है। प्राथमिकी में जिन दो गवाहों का जिक्र किया गया है, उनका आवेदक से खून का रिश्ता है। साथ ही दोनों मुकर गए थे।
दुर्भाग्य से, एक आरोपी हर प्रसाद की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। अपने आदेश में, अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने के लिए “विश्वसनीय और संतोषजनक” सबूत पेश करने में विफल रहा कि आरोपियों ने अपराध किया था।
गौरतलब है कि आरोपी पिछले दो दशकों से जमानत पर थे जिनके विरुद्ध जिले के चंदपा थाने में आईपीसी 323, 504, 506, 452 और 3 (1) (10) एससी-एसटी अधिनियम के तहत आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया था।
अभियोजन पक्ष ने आरोपी पक्ष पर आरोप लगाया था इन्होंने घर में घुसकर मारपीट की, गाली गलौज की, जान से मारने की धमकी दी और जातिसूचक शब्द कहे।
वहीं आरोपी पक्ष की ओर से अधिवक्ता ने तर्क देते हुए कहा कि इन्हें गांव की रंजिश में झूठा फँसाया गया था और इनके विरुद्ध कोई सबूत नहीं पेश किए गए।
सभी पक्षों को सुनते हुए अदालत ने आदेश दिया जिसमें कहा गया, “अभियोजन की ओर से कुल दो तथ्य के साक्षी 1. रामजीलाल 2. मनीराम परीक्षित कराये गये हैं, जो अभियोगी के ही परिवार का सदस्य है। अभियोजन की ओर से किसी अन्य साक्षी को परीक्षित नहीं कराया गया है। अभियोजन पक्ष की ओर से परीक्षित दोनों ही साक्षीगण न्यायालय में पक्षद्रोही हो गये हैं और उन्होंने अभियोजन कथानक का समर्थन नहीं किया है।”
“इन साक्षीगण से अभियोजन पक्ष द्वारा प्रतिपरीक्षा की गई है, किन्तु इनकी प्रतिपरीक्षा में भी ऐसा कोई तथ्य निकलकर नहीं आया है, जिसका लाभ अभियोजन पक्ष को दिया जा सके। इस प्रकार उपरोक्त परीक्षित कराये गये साक्षीगण की साक्ष्य से अभियोजन कथानक की पुष्टि नहीं होती है और अभियोजन कथानक -5 अभियुक्तगण सन्देह का लाभ पाते हुये दोषमुक्त किये जाने योग्य है।”