लखनऊ (UP): यूपी विधानसभा अध्यक्ष ने मिशनरियों के धर्मांतरण विरोधी गतिविधियों के लिए कानून की माँग की है।
हाल ही में बीते संसद के मानसून सत्र में कई सांसदों ने धर्मांतरण का मुद्दा उठाया। इसमें झारखंड के भाजपा सांसद निशिकांत दुबे प्रमुख रहे हैं। अब यूपी विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने प्रमुख हिंदी अखबार दैनिक जागरण में एक लेख के जरिए देश के राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून की माँग की है।
लेख में दीक्षित ने कहा “मिशनरी संगठन विदेशी आर्थिक सहायता द्वारा भारत में धर्मांतरण के काम में संलग्न हैं। भय, प्रलोभन और झूठी सेवा के माध्यम से वे आदिवासियों, वंचितों का धर्मांतरण कराते हैं। धर्मांतरण राष्ट्रीय अस्तित्व के लिए खतरा है।”
आगे कहा “केंद्र सरकार ने हाल में विदेशी अनुदान विनियमन अधिनियम यानी FCRA में संशोधन किया है। इसके पहले कुछ संगठनों के अनुमति पत्र निरस्त किए गए थे। संशोधित अधिनियम में विदेशी अनुदान को किसी अन्य संगठन को हस्तांतरित करने पर रोक भी लगाई गई है। सो विदेशी अनुदान द्वारा भारत को कमजोर करने की साजिश में जुटे व्यक्ति और समूह बिलबिला गए हैं। संशोधित कानून का विरोध किया जा रहा है। तृणमूल कांग्रेस के नेता सौगत राय ने कहा कि संशोधन अल्पसंख्यकों के लिए ठीक नहीं। कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने इसे विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास बताया।”
भारत में ईसाई धर्मांतरण का मुख्य निशाना आदिवासी:
“भारत में ईसाई धर्मांतरण का मुख्य निशाना आदिवासी हैं। आदिवासी बहुल इलाकों के साथ अन्यत्र भी उनकी सक्रियता है। स्वतंत्रता के तीन-चार साल के भीतर ही मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार धर्मांतरणों से परेशान हुई। मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाया। आयोग ने 14 जिलों के 11,360 लोगों के बयान लिए। ईसाई संस्थाओं ने भी अपनी बात कही। आयोग ने धर्मांतरण के लक्ष्य से भारत आए विदेशी तत्वों को बाहर निकालने की सिफारिश की। उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमएल रेगे की जांच समिति (1982) ने ईसाई धर्मांतरण को दंगों का कारण बताया। न्यायमूर्ति वेणुगोपाल आयोग ने धर्मांतरण रोकने के लिए कानून बनाने की सिफारिश की। ऑस्ट्रेलियाई पादरी ग्राहम स्टेंस और उनके बच्चों की हत्या की जांच करने वाले वाधवा आयोग ने भी ईसाई धर्मांतरण को चिन्हित किया।”
लंबे समय से ईसाई धर्मांतरण का भारत पर निशाना
“भारत लंबे समय से ईसाई धर्मांतरण का निशाना है। गोवा पर पुर्तगाली कब्जे के बाद पादरी जेवियर ने हिंदुओं का भयंकर उत्पीड़न किया। गोवा में ईसाई कानून 1561 में लागू हुए। हिंदू प्रतीक धारण करना भी अपराध था। तिलक लगाना और घर में तुलसी का पौधा रोपना भी मृत्युदंड का अपराध बना। ‘फ्रांसिस जेवियर: द मैन एंड हिज मिशन’ के अनुसार एक दिन में छह हजार लोगों के सिर काटने पर जेवियर ने प्रसन्नता व्यक्त की। एआर पिरोलकर ने ‘द गोवा इनक्वीजन’ में लिखा, ‘आरोपी के हाथ-पांव काटना, मोमबत्ती से शरीर जलाना, रीढ़ तोड़ना, गोमांस खिलाने जैसे तमाम अमानवीय अत्याचार किए गए।”
धर्मांतरण राष्ट्रीय अस्तित्व के लिए खतरा है क्योंकि धर्मान्तरित व्यक्ति की अपनी भूमि और संस्कृति के प्रति श्रद्धा बदल जाती है “सेवा की आड़ में आस्था से खिलवाड़” आज दैनिक जागरण समाचार पत्र में प्रकाशित लेख pic.twitter.com/HiQTy8Mrf4
— Hriday Narayan Dixit (@Speaker_UPLA) September 28, 2020
राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून बनें:
अंत में दीक्षित ने कहा कि “लंबा समय बीत गया, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों ने अधिनियम बनाए हैं, लेकिन लालच और धोखाधड़ी द्वारा धर्मांतरण की गतिविधियां जारी हैं। ऐसे में एफसीआरए में बदलाव के बाद राज्यों को भी धर्मांतरण के विरुद्ध अलग से कानून बनाने चाहिए।”
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