गीता जयंती, यह दिन श्रीमद् भगवद्गीता की प् जयंती के रूप में मनाया जाता है। सनातन धर्म मे कहा जाता है कि इस दिन भगवद्गीता के दर्शन मात्र का बड़ा लाभ होता है।
यदि इस दिन गीता के श्लोकों का वाचन किया जाए तो मनुष्य के पूर्व जन्म के दोषों का नाश होता है। सनातन धर्म में इसका अत्यधिक महत्व है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में उस वक्त गीता का ज्ञान दिया था जब वह अपने कर्म पथ से भटकने लगे थे। हिंदू पंचांग के अनुसार इसे मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी पर मनाया जाता है। इसे गीता का प्रतीकात्मक जन्म दिन माना जाता है।
यह शुक्ल एकादशी के दिन मनाई जाती है और इस दिन विधिपूर्वक पूजन व उपवास करने पर हर तरह के मोह से मोक्ष मिलता है. यही वजह है कि इसका नाम मोक्षदा भी रखा गया है.गीता जयंती का मूल उद्देश्य यही है कि गीता के संदेश का हम अपनी ज़िंदगी में किस तरह से पालन करें और आगे बढ़ें.गीता का ज्ञान हमें धैर्य, दुख, लोभ व अज्ञानता से बाहर निकालने की प्रेरणा देता है. गीता मात्र एक ग्रंथ नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक संपूर्ण जीवन है. इसमें पुरुषार्थ व कर्तव्य के पालन की सीख है.
नैनं छिदंति शस्त्राणी, नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयंतेयापो न शोषयति मारुतः ।।
भावार्थ यह आत्मा न तो कभी किसी शस्त्र द्वारा खण्ड-खण्ड किया जा सकता है, न अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न जल द्वारा भिगोया या वायु द्वारा सुखाया जा सकता है |
ऐसे अनेक श्लोक हैं जिन्हें पढ़ने और उनका अर्थ समझने से मनुष्य को जीवन के कष्टों से ना सिर्फ मुक्ति मिलती है, बल्कि वह जीवन के उस पथ को प्राप्त करता है जिसका ज्ञान स्वयं जगतज्ञानी परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया है।
परमाणु बम जनक ओपेनहाइमर गीता से प्रभावित
जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर एक सैद्धांतिक भौतिकविद् थे जिन्हें ‘एटोमिक बॉम्ब का जनक’ भी कहा जाता है। ओपेनहाइमर का यह कथन हिन्दू धर्म की धार्मिक किताब भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय के 32वें श्लोक की ओर इशारा करता है, जो कहता है –भगवद् गीता अध्याय 11 श्लोक 32. कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।…॥३२॥अर्थात मैं लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूं। मैं समस्त लोकों को नष्ट करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूं।
ओपेनहाइमर ने मेक्सिको के ट्रिनिटी टेस्ट केंद्र पर 16 जुलाई 1945 को जब सबसे पहले एटोमिक बॉम्ब का विस्फोट देखा तो उन्होंने कहा ,’मुझे हिन्दू शास्त्र भगवद गीता की वह पंक्ति याद आ रही है जब विष्णु अपना विराट स्वरूप दिखाते हुये अर्जुन को समझा रहे है कि मैं लोकों का नाश करने वाला महाकाल हूँ। और मैं इस समय अधर्म का नाश करने के लिए प्रवृत्त हुआ हूँ।
ओपेनहाइमर ने गीता को समझने के लिए संस्कृत की अतिरिक्त शिक्षा ली:
ओपेनहाइमर ने गीता को समझने के लिए संस्कृत की अतिरिक्त शिक्षा ली क्योंकि वह गीता को उसी की भाषा में समझना चाहते थे। उनका जन्म भले ही एक यहूदी परिवार में हुआ था लेकिन महान हिंदू महाकाव्य भगवद्-गीता के ज्ञान ने उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर लिया। ओपेनहाइमर के अनुसार 19वीं शताब्दी में अगर ऐसा कुछ था जो पश्चिम के देश भारत से सीख सकते थे तो यह गीता का अध्ययन था। भारत के महाकव्य महाभारत में ब्रह्मास्त्र का उल्लेख मिलता है जो परमाणु बम के समान ही माना जाता था। उल्लेखनीय रूप से ओपेनहाइमर भी परमाणु के साथ ब्रह्मास्त्र की संभावना पर विश्वास करते थे।
अपने दोस्तों को भी गीता पढ़ने की सलाह देते थे:
ओपेनहाइमर को गीता पर इतना विश्वास था कि अपने दोस्तों को भी गीता पढ़ने की सलाह देते थे और वे स्वयं गीता की एक प्रति अपने पास रखते थे। फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट के दाह संस्कार के दौरान भी उन्होंने गीता के 17वें अध्याय के तीसरे श्लोक को पढ़ा था जिसमें यह लिखा है कि सभी मनुष्योंकी श्रद्धा अन्तःकरण के अनुरूप होती है। मनुष्य श्रद्धामय है। इसलिये जो जैसी श्रद्धावाला है? वही उसका स्वरूप है अर्थात् वही उसकी निष्ठा स्थिति है।
जब आइंस्टाइन को गीता अपने युवा उम्र में न पढ़ पाने का हुआ अफसोस:
सभी आध्यात्मिक दर्शनों में स्वीकार्य है गीता:
भगवद्गीता भारत की सभी धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक परम्पराओं में सहज स्वीकार्य है। सांख्य, योग, वेदान्त के तो अनेक रहस्य इसके श्लोकों में समाहित हैं ही; न्याय, वैशेषिक और मीमांसा के सूत्रों की व्याख्या भी यहाँ उपलब्ध हो जाती है। यह वेद से लेकर दर्शनों के सिद्धान्तों और उपनिषद से पुराणों तक की कथावस्तु को अपने में समेटे हुए है। न इसका किसी मत से विरोध है और न किसी सिद्धान्त से वैमनस्य।
विदेशो मे भी मान्य और सम्मानित है गीता:
अपने तार्किक सिद्धान्तों और व्यावहारिक उपदेशों से गीता भारत से बाहर भी मान्य और सम्मानित है। 1785 में चाल्र्स विल्किंस द्वारा पहले अंग्रेजी अनुवाद के बाद से 1982 तक गीता के 75 भाषाओं में 1982 अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। यही गीता की विश्वव्यापी स्वीकृति का प्रमाण है। विश्व जनमानस को भारतीय दर्शन और अध्यात्म से परिचित कराने वाले इस काव्य का अध्ययन और अध्यापन आज आॅक्सफोर्ड, हार्वर्ड और बर्कले जैसे अग्रणी विश्वविद्यालयों में किया जा रहा है।
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