उज्जैन: मध्य प्रदेश राज्य में महाकाल की नगरी अवंतिका (वर्तमान में उज्जैन) नगरी में महर्षि सांदीपनि आश्रम स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है।
इस पौराणिक स्थल का महत्व 5000 साल पुराना है। यह महर्षि सांदीपनि की तप:स्थली थी। यहाँ भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी। इसलिए ये स्थल भारत पौराणिक तीर्थस्थल में से एक हैं और देश , विदेश से लोग यहाँ दर्शन और भ्रमण के लिए आते हैं। उज्जैन के प्रमुख यात्रा स्थलो में से एक है। पुराणों और ग्रंथों में भी इस स्थल का उल्लेख मिलता है।
सांदीपनि आश्रम:
हमारी ग्राउंड रिपोर्टिंग में हमने जाना महर्षि सांदीपनि आश्रम के बारे में, श्री कृष्ण के गुरु ऋषि मुनि सांदीपनि की तपस्थली है इस प्रचीनतम आश्रम में श्रीकृष्ण ने बलराम के साथ 64 दिन शिक्षा ली थी। इस दौरान उन्होंने अपनी शिक्षा में 14 विद्याएं और 64 कलाएं सीखी थीं। जिसमें शस्त्र, शास्त्र , संगीत, आत्मज्ञान अन्य कलाओं की शिक्षा प्राप्त हुई।
यही शिक्षा कुरुक्षेत्र में गीता के रूप में श्रीकृष्ण के श्रीमुख से प्रकट हुई। इसके बाद ही वे योगेश्वर और जगद्गुरु भी कहलाएं। यह परंपरा सांदीपनि आश्रम उज्जैन में आज भी चल रही है। पुजारी रूपम व्यास के अनुसार शहर के नागरिक ही नहीं देशभर से लोग अपने बच्चे को पहली बार स्कूल भेजने के पहले यहां आकर उनका विद्यारंभ संस्कार कराते हैं। गुरु पूर्णिमा पर भी यहां विद्यारंभ संस्कार के लिए अधिकतर लोग आते हैं।
आश्रम में क्या है खास:
महर्षि सांदीपनि आश्रम में वर्तमान में गुरु सांदीपनि की प्रतिमा के समक्ष चरण पादुकाओं के दर्शन होते हैं लोग यहाँ भारी में घूमने आते हैं यहाँ भगवान श्री कृष्ण के हाथ में स्लेट व कलम दिखाई देती है और यहां भगवान श्रीकृष्ण की बैठी हुई प्रतिमा के दर्शन होते हैं, जबकि बाकी अन्य मंदिरों में भगवान खड़े होकर बांसुरी बजाते नजर आते हैं। भगवान कृष्ण बाल रूप में हैं, उनके हाथों में स्लेट व कलम दिखाई देती है, जिससे यह प्रतीत होता है, कि वे विद्याध्ययन कर रहे हैं।
हुआ हरि से हर का मिलन:
हरि अर्थात कृष्ण और हर यानी भोलेनाथ। भगवान श्रीकृष्ण जब सांदीपनि आश्रम में विद्या का अध्ययन करने पधारे, तो भगवान शिव उनसे मिलने, उनकी बाल लीलाओं के दर्शन करने महर्षि के आश्रम में उपस्थित हुए यही वह दुर्लभ क्षण था, जिसे हरि से हर के मिलन का रूप दिया गया।
खड़ी हुई नंदी की प्रतिमा:
महर्षि सांदीपनि के आश्रम में एक मात्र भगवान शिव का एक मंदिर भी है, जिसे पिंडेश्वर महादेव कहा जाता है। जब भगवान शिव अपने प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का दर्शन करने यहां पधारे, तो गुरु और गोविंद के सम्मान में नंदी जी यहाँ खड़े है आज भी देखा जा सकता हैं। यही वजह है कि यहां एक मात्र नंदी जी की खड़ी प्रतिमा के दर्शन भक्तों को होते हैं। देश के अन्य शिव मंदिरों में नंदी की बैठी प्रतिमाएं के ही दर्शन प्राप्त होतें हैं।
गोमतीकुण्ड:
भगवान कृष्ण जब स्लेट पर जो अंक लिखते थे या अध्ययन करते थे तो उन्हें मिटाने के लिए वे जिस कुंड में जाते थे, वह कुंड आज भी यहाँ स्थापित है। जिसे गोमतीकुण्ड के नाम जाना जाता है इस आश्रम के सामने वाले मार्ग को आज भी अंकपात मार्ग के नाम से जाना जाता हैं।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.