नई दिल्ली: पिछले दिनों के बहुचर्चित विष्णु तिवारी मामले के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें मांग है कि गलत मुकदमों के पीड़ितों को मुआवजे के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए।
एएनआई के हवाले से वकील अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा कि वैकल्पिक रूप से, जीवन के अधिकार, स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा का रक्षक होने के नाते सर्वोच्च न्यायालय फ़र्जी अपराधों के पीड़ितों के मुआवजे के लिए दिशानिर्देशों को बनाने के लिए अपनी संवैधानिक शक्ति का उपयोग कर सकता है।
“झूठे मामलों में एक उछाल आया है। निर्दोष व्यक्तियों के लिए कोई प्रभावी वैधानिक और कानूनी तंत्र उपलब्ध नहीं होने के कारण गलत अभियोजन और असंगतता, ‘न्याय के विफलता’ का कारण बन रही है।”
विष्णु तिवारी मामले से याचिका:
याचिकाकर्ता ने कहा कि इस साल 28 जनवरी को आए एक फैसले के तथ्य सामने आए जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के ललितपुर निवासी विष्णु तिवारी को निर्दोष घोषित किया और कहा कि प्राथमिकी का मकसद भूमि विवाद था।
एससी / एसटी एक्ट के तहत बलात्कार और अत्याचार के लिए मामला दर्ज होने के बाद विष्णु को 16 सितंबर 2000 को गिरफ्तार किया गया था और वो 20 साल तक जेल में रहे।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जिस विष्णु तिवारी को निर्दोष साबित किया उन्होंने बलात्कार के फ़र्जी आरोपों में 20 साल जेल में बिताया, जिसमें कोई भी मुआवजा नहीं दिया गया। यहां तक कि दुर्भावनापूर्ण मुकदमों के लिए प्रभावी मुआवजे और कानूनी तंत्र की आवश्यकता को दर्शाता है।
याचिका में कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 नवंबर, 2017 को भारत के विधि आयोग को निर्देश दिया कि वह गलत अभियोजन और उत्पीड़न के शिकार लोगों को राहत और पुनर्वास के मुद्दे की एक व्यापक परीक्षण कराए और विधि आयोग ने 30 अगस्त, 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन केंद्र सिफारिशों को लागू करने के लिए उचित कदम नहीं उठाया है।
याचिका ने विधि आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने के लिए दिशा-निर्देश भी मांगे। इसने आगे NCRB की वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट को प्रिज़न स्टैटिस्टिक्स इंडिया (PSI) के लिए कहा है जिसमें जेलों, कैदियों और जेल अवसंरचना के संबंध में जानकारी है।