जयपुर: राजस्थान सरकार ने दलित महिलाओं के साथ हुए अत्याचार के संबंध में पूछे गए एक सवाल का बजट सत्र के दौरान लिखित जवाब देते हुए कहा है कि अनुसूचित जाति की महिलाओं से दुष्कर्म जैसे झूठे मामले दर्ज होते हैं।
समाचार पत्र दैनिक भास्कर की रिपोर्ट द्वारा प्राप्त इनपुट्स के हवाले से बताया गया कि गृह विभाग के जवाब के अनुसार गंभीर अपराधों में बिना रोक-टोक मुकदमे दर्ज कर लिए जाते हैं। जिसके कारण दलित महिलाओं के साथ अत्याचार के आंकड़े बढ़े हैं।
जबकि पुलिस जांच में अधिकतर मामले झूठे पाए जाते हैं। गहलोत सरकार ने नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया के द्वारा विधानसभा में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए यह टिप्पणी की है।
सरकार के गृह विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक दलित महिलाओं के साथ दुष्कर्म के मुकदमों में 2018 की तुलना में 2020 में 17.53 फ़ीसदी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन यह वृद्धि इसलिए हुई है क्योंकि पुलिस द्वारा प्राथमिकता से दलित अत्याचार के मुकदमे दर्ज किए जाते हैं। और आपसी रंजिश के चलते दुष्कर्म के झूठे मामले दर्ज करा दिए जाते हैं।
राजस्थान सरकार के गृह विभाग द्वारा लिखित जवाब के अनुसार 2018 से 2020 में दलित महिलाओं के साथ हुए दुष्कर्म के 38% मामले झूठे पाए गए। इन 3 सालों में दलित अनुसूचित जाति की महिलाओं से दुष्कर्म के 1467 मामले दर्ज हुए जिनमें से 555 मामले पुलिस जांच में झूठे निकले।
वर्ष 2018 में एससी महिलाओं से दुष्कर्म के दर्ज 416 मामलों में से 161 झूठे, 2019 में 563 में से 214 मामले झूठे और 2020 में दर्ज 488 मुकदमों में से 180 मुकदमे झूठे पाए गए।
सरकार द्वारा जारी झूठे मामलों के आंकड़े बहुत अधिक होने के कारण पुलिस पर झूठे मामलों की जांच का अत्यधिक कार्यभार बढा है और जिन्हें झूठा आरोपी बनाया गया है उनको भी जीवन के आवश्यक वर्ष जांच के दौरान बर्बाद हुए हैं।
सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि दो हजार अट्ठारह में भाजपा सरकार की अपेक्षा गहलोत सरकार की कांग्रेस सरकार में ऐसी महिलाओं से दुष्कर्म के 22% मामले बढ़े हैं।
गृह विभाग के अनुसार 2018 से 2020 तक 3 साल के दौरान दलित अत्याचार की 42 फ़ीसदी मामले झूठे पाए गए। इन 3 सालों में 18426 मुकदमे दर्ज हुए जिनमें से 7731 दलित अत्याचार के मुकदमे जांच के दौरान झूठे पाए गए।