नई दिल्ली: सरकार ने संसद में कहा है कि अवैध प्रवासी (रोहिंग्या सहित) राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है। कुछ रोहिंग्या प्रवासियों के गैर – कानूनी गतिविधियों में लिप्त होने की सूचनाएं मिली है।
दरअसल बसपा के लोकसभा सांसद रितेश पांडेय ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से रोहिंग्याओं से जुड़े कुछ प्रश्न पूछे थे:
( क ) क्या सरकार को ऐसा लगता है कि रोहिंगिया मुसलमानों का देश में पुनर्वास करने से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा होगा।
( ख ) यदि हां, तो इसके कारण और औचित्य क्या है।
( ग ) यदि नहीं, तो अप्रवासी रोहिंगिया मुसलमानों को विधिक दर्जा प्रदान करने में विलंब के क्या कारण।
( घ ) क्या सरकार उत्पीड़न विरोधी संयुक्त राष्ट्र संघ अमिसमय ( यू.एन.सी.ए.टी. ) का एक हस्ताक्षरी है तथा क्या भारत ने सिविल और राजनीतिक अधिकार संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कॉन्वेंट ( आई.सी.सी.पी.आर. ) का समर्थन किया है और यदि हां, तो तत्संबंधी व्यौरा क्या है।
( छ ) क्या रोहिंगिया मुसलमानों का भारत से म्यांमार वापस भेजना यू.एन.सी.ए.टी. तथा आई.सी.सी.पी.आर. का उल्लंघन है और यदि हां, तो ऐसे कुछ रोहिंगिया मुसलमानों को वापस भेजने का औचित्य क्या है।
गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बसपा सांसद के सवालों के जवाब में कहा कि अवैध प्रवासी (रोहिंग्या सहित) राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक खतरा है। कुछ रोहिंग्या प्रवासियों के गैर – कानूनी गतिविधियों में लिप्त होने की सूचनाएं मिली है। भारत शरणार्थियों के दर्जे से संबंधित 1951 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन और उससे संबंधित 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
आगे उन्होंने कहा कि सभी विदेशी राष्ट्रिक (शरण मांगने वालों सहित) “विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946”, “विदेशियों का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1939”, “पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920” और “नागरिकता अधिनियम, 1955” और उनके अंतर्गत बनाए गए नियमों एवं आदेशों में निहित प्रावधानों द्वारा शासित होते हैं। ऐसे विदेशी राष्ट्रिक, जो वैध यात्रा दस्तावेजों के बिना देश में प्रवेश करते हैं अथवा भारत में रहते हुए जिनके यात्रा दस्तावेजों की वैधता समाप्त हो जाती हैं, उन्हें अवैध प्रवासी माना जाता है तथा उनके विरुद्ध कानून के मौजूदा प्रायधानों के अनुसार कार्रवाई की जाती है।
भारत ने 14 अक्तूबर, 1997 को अत्याचार और अन्य क्रूर, अमानवीय अथवा अपमानजनक व्यवहार या सजा से संबंधित कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए थे। तथापि, भारत ने कन्वेंशन की अभिपुष्टि नहीं की है। भारत ने दिनांक 10.04.1979 को नागरिक और राजनीतिक अधिकारों (आईसीसीपीआर) पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन को स्वीकार किया था। नागरिकता का सत्यापन करने के बाद अवैध प्रवासियों को डिटेन करना और निर्वासित करना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 की धारा 3 के तहत अवैध विदेशी राष्ट्रिकों को निवासित करने तथा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 की धारा 5 के अंतर्गत अवैध विदेशी राष्ट्रिकों को बलपूर्वक हटाने से संबंधित केंद्र सरकार की शक्तियां भी भारत के संविधान के अनुच्छेद 258 (1) के तहत सभी राज्य सरकारों को सौंपी गई हैं। इसके अलावा , भारत के संविधान के अनुच्छेद 23910 के अंतर्गत सभी संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासकों को भी निदेश दिया गया है कि वे उपर्युक्त शक्तियों से संबंधित केंद्र सरकार के कार्यों का निवर्हन करें।
अंत में उन्होंने कहा कि भारत के उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका संख्या 793/2017 दायर की गई है, जिसमें अन्य बातों के साथ – साथ, रोहिंग्या को भारत से निवासित न करने की प्रार्थना की गई है। मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष न्यायाधीन है। तथापि, कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार रोहिंग्याओं के किए जा रहे निर्वासन पर न्यायालय ने कोई रोक नहीं लगाई है।