नई दिल्ली : देश में जातिगत टिप्पणी करना आजकल फैशन बन चुका है | वैसे देश में कई राजनेताओं की सियासी दुकान भी इन्हीं टिप्पणियों से चलती है |
और आज 21वीं सदी में भी कई समाजसेवी, चिंतक, लेखक, पत्रकार जातियों से ऊपर उठकर नहीं सोच रहे हैं | एक तरफ दुनिया जहां विकास की ओर देख रही है वहीं आज भारत के बारे में यह भी बड़ी बिडम्बना है कि समाज का एक बड़ा हिस्सा जातीय मुद्दों में उलझा रहे |
इसमें सबसे ज्यादा हैरानी और बढ़ जाती है जब ऐसे लोग इस चीज को संविधान निर्माता बीआर अम्बेडकर से जोड़कर देखते हैं |
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