सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश मार्कंडेय काटजू का कहना है कि भारतीय राजनीति में आरक्षण बांटो और राज करो की नीति पर काम कर रहा है, आरक्षण एससी, ओबीसी और सवर्णों के बीच जातीय दुश्मनी पैदा करा रहा हैं। अब समय आ गया हैं कि सभी वर्गों को राजनीति में जातिगत आरक्षण के महत्व को समझते हुए इसे खत्म करने की मांग करनी चाहिए।
उन्होंने द वीक में लिखे अपने लेख में कहा कि मैं शैक्षणिक संस्थानों या नौकरियों में प्रवेश के लिए किसी भी जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ हूं। सभी जाति और धर्म के गरीब बच्चों को विशेष सुविधाएं और सहायता मिलनी चाहिए, जिससे सभी को एक समान अवसर प्रदान हो सके।
कुछ न करने की धारणा को बढ़ावा देता है आरक्षण
पूर्व न्यायधीश मार्कंडेय काटजू ने कहा कि आरक्षण दो कारणों से एससी और ओबीसी दोनों को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है, आरक्षण उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से कमजोर बना रहा हैं। अगर देखा जाए तो आरक्षण एससी और ओबीसी दोनों वर्ग के युवाओं के मन में भ्रम पैदा करता है कि उन्हें मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है, क्योंकि उन्हें बिना मेहनत के भी वो सब मिल सकता है जो उन्हें शायद मेहनत करने पर भी न मिले।
इतना ही नहीं आरक्षण कम से कम लोगों को ही मिल पाता है, जबकि कहने सुनने को यह मिलता है कि आरक्षण सभी को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में एससी वर्ग की जनसंख्या 25 करोड़ होगी, लेकिन नौकरियां सिर्फ लाखों को ही मिल पाती हैं।
जातिवाद को बढ़ावा देता जातिगत आरक्षण
मार्कंडेय काटजू का कहना है कि जातिगत आरक्षण ने जाति व्यवस्था को नष्ट करने में नहीं बल्कि उसे और अधिक स्थायी बनाने का काम किया है। उन्होंने कहा कि राजनीति में जातिगत आरक्षण का इस्तेमाल अपने निजी स्वार्थ के लिए किया जाता रहा है, न कि एससी और ओबीसी या किसी वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए आरक्षण का उपयोग किया जा रहा हैं।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.