भुवनेश्वर- उड़ीसा हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। जिसमें कोर्ट का कहना है कि पीड़ित की जाति का नाम लेकर गाली देना एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है, जब तक कि गाली देने का इरादा पीड़ित का अपमान करना या डराना न हो।
घटना बीते दिनों 6 दिसंबर 2012 की है, जहां शिकायतकर्ता के मवेशी किसी काम के दौरान याचिकाकर्ता के घर में घुस गए थे। जिससे गुस्साए याचिकाकर्ता ने मवेशियों को डंडे से पीटते हुए शिकायतकर्ता को उसकी जाति से संशोधन करते हुए गाली गलौज की थी।
जिसके बाद शिकायतकर्ता की शिकायत पर पुलिस ने कथित अपराधों के तहत मामला दर्ज कर लिया था और चार्जशीट दाखिल होने के बाद सत्र न्यायलय ने याचिकाकर्ता को धारा 294, 323, 506, और एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1)(x) के तहत आरोपी करार दिया था। इतना ही नहीं जिसके बाद याचिकाकर्ता ने कोर्ट का आदेश रद्द करने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
कोर्ट ने सुनाया फैसला
जस्टिस राधा कृष्ण पटनायक ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस मामले में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के सदस्य को अपमानित करने या डराने धमकाने के तत्व शामिल नहीं है, याचिकाकर्ता ने गुस्से में आकर अचानक शिकायतकर्ता से गाली गलौज की थी। जो अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध नहीं होगा, जब तक कि गाली गलौज करने का इरादा अपमान करना या डराना नहीं होगा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून के प्रावधानों को ध्यान से पढ़ा या समझा जाता तो स्पष्ट हो जाता कि याचिकाकर्ता द्वारा शिकायतकर्ता के खिलाफ गाली गलौज करने का इरादा उसका अपमान करना या उसे डराना नहीं था।
आपको बता दे कि एससी एसटी एक्ट 2016 के प्रावधानों के अनुसार जो भी व्यक्ति अनुसूचित जाति और जनजाति का सदस्य नहीं है, उसके द्वारा अगर किसी अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के किसी भी सदस्य का जानबूझकर अपमान करता है या सार्वजनिक रूप अपमानित करने के इरादे से डराता और धमकाता है तो उसे छह महीने से लेकर पांच साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान हैं।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.