प्रयागराज: प्रयागराज की एक एससी-एसटी विशेष अदालत से बड़ा और सनसनीखेज फैसला सामने आया है। लड़ाई-झगड़े और जाति-सूचक गालियों के मामले में फंसे एक एसी मैकेनिक परवेज आलम को न सिर्फ आरोपों से बरी कर दिया गया, बल्कि झूठे साक्ष्य पेश करने वाली परिवादिनी सरोजा देवी के खिलाफ कोर्ट ने भी सख्त रुख अपनाते हुए नोटिस जारी किया और उनके खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश दिए ।
क्या है पूरा मामला?
ये कहानी छह साल पहले शुरू हुई। लड़ाई का केंद्र बना प्रयागराज के कटरा-मनमोहन पार्क क्षेत्र का एक साधारण सा इलाका। यहां के निवासी परवेज आलम, जो अपने घर के बाहर एसी रिपेयर की दुकान चलाते थे। शिकायत में महिला ने दावा किया कि परवेज और उसके साथियों ने उनके बेटे सोनू उर्फ सनी को दुकान से लौटते वक्त बेरहमी से पीटा और जाति-सूचक गालियां दीं। जब वह अपने बेटे को बचाने पहुंचीं, तो उन्हें भी पीटा गया। इस घटना के बाद सरोजा ने एसएसपी को शिकायत देकर परवेज के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करवा दिया। तत्कालीन सीओ श्रीश चंद्र ने मामले की जांच की और परवेज के खिलाफ पुख्ता सबूतों का दावा किया। मामला अदालत में पहुंचा, लेकिन असली कहानी तो यहीं से पलटनी शुरू हुई।
अदालत में पलटा मामला
सुनवाई के दौरान जैसे ही सरोजा देवी ने अपने बयान दर्ज कराए, सारा मामला पलट गया। सरोजा ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने परवेज को किसी पर हमला करते हुए नहीं देखा था। उन्होंने यह भी कहा कि परवेज ने जाति-सूचक गालियां नहीं दीं। यहां तक कि उन्होंने माना कि उन्हें किसी का धक्का लगने से चोटें आई थीं। सरोजा ने कोर्ट में कहा कि केस दर्ज कराने का यह फैसला उनका नहीं था बल्कि कुछ लोगों के कहने पर उन्होंने ऐसा किया। यह स्वीकारोक्ति ही परवेज के बचाव में सबसे बड़ा हथियार बन गई। अदालत ने न सिर्फ परवेज को आरोपों से बरी किया बल्कि झूठी गवाही देने पर सरोजा को भी कठघरे में खड़ा कर दिया।
अदालत का सख्त कदम: झूठे गवाहों पर कानूनी शिकंजा
एससी-एसटी एक्ट के विशेष न्यायाधीश निर्भय प्रकाश ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि झूठे मुकदमे दर्ज कराना न केवल न्यायपालिका के समय का दुरुपयोग है, बल्कि निर्दोष लोगों की जिंदगी बर्बाद कर सकता है। अदालत ने सरोजा देवी के खिलाफ नोटिस जारी कर उनके विरुद्ध मामला दर्ज करने का आदेश दिया है।
निर्दोष को मिली राहत, लेकिन कई सवाल उठे
परवेज आलम की बेगुनाही साबित होने के बाद इलाके के लोग यह सवाल कर रहे हैं कि ऐसे झूठे मुकदमों के कारण न सिर्फ निर्दोषों का समय और धन बर्बाद होता है, बल्कि समाज में बेवजह तनाव बढ़ता है। इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया कि कानून का दुरुपयोग किस हद तक किया जा सकता है। झूठे गवाह और साक्ष्य प्रस्तुत करने के मामले में अब सरोजा देवी को कोर्ट का सामना करना होगा। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, यह मामला उनके लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है। प्रयागराज का यह केस न्याय की जीत और झूठे आरोपों के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। यह न्यायपालिका की भूमिका और सख्ती को उजागर करता है।