प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान पाक्सो और Sc-St Act को लेकर महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, कोर्ट ने कहा कि पाक्सो और एससी एसटी एक्ट के तहत कई मामलों में फर्जी व झूठी एफआईआर दर्ज करा दी जाती हैं। ऐसे मामले आरोपित को झूठा फंसाने, समाज में बेइज्जत करने और सरकार से मुआवजा राशि वसूलने के लिए दर्ज कराएं जाते है, यह बेहद ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने आजमगढ़ के फूलपुर निवासी अजय यादव की अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए याची को सशर्त अग्रिम जमानत पर 50 हजार रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया हैं। इतना ही नहीं कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को भी निर्देश दिया कि इस प्रकार के संवेदनशील मामले में केस झूठा पाए जाने पर पीड़िता के खिलाफ धारा 344 के तहत कार्रवाई करें और सरकारी की तरफ से मिली मुआवजा राशि की भी वसूली की जाए।
एफआईआर और पीड़िता के बयान पर विरोधाभास
याचिकाकर्ता अजय यादव का कहना है कि कोई घटना घटित ही नहीं हुई है, उसने कोई अपराध नही किया। बीते चार साल पहले नाबालिग ने उसके खिलाफ शारीरिक संबंध बनाने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी। जबकि पीड़िता द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर और पीड़िता के पुलिस को दिए धारा 161 के बयान में भी विरोधाभास हैं। दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया कि वर्ष 2012 में संबंध बनाए गए तो पुलिस को दिए बयान में बताया गया कि 2013 में संबंध बनाए गए।
इतना ही नहीं घटना की प्राथमिकी भी वर्ष 2019 में दर्ज कराई गई। इस पूरे मामले में सह अभियुक्त बनाए गए दयालु यादव को भी अग्रिम जमानत मिल चुकी हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि याची का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, उसे झूठा फंसाया गया हैं। जो अपराध कभी हुआ ही नहीं उसके लिए उसे आरोपी बनाया गया, यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं।