नई दिल्ली: मंगलवार को आयोजित बैठक में कुछ ईसाई सांसदों ने कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (CBCI) से आग्रह किया कि वे वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 के मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय के साथ खड़े हों। सांसदों का कहना था कि यह विधेयक संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन करता है और चर्च को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपना समर्थन देना चाहिए। बैठक में विभिन्न राजनीतिक दलों के विपक्षी सांसदों ने चर्च को यह भी कहा कि देश में बढ़ रही “मुसलमानों के खिलाफ नफरत” का विरोध करना भी जरूरी है। उन्होंने चर्च से अपील की कि वह इन मुद्दों पर सख्त और स्पष्ट रुख अपनाए।
वक्फ बोर्ड पर संपत्ति विवाद का मामला
बैठक में यह भी चर्चा हुई कि वक्फ संशोधन विधेयक, भले ही कुछ मामलों में संपत्ति विवादों से जुड़ा हो, लेकिन यह व्यापक रूप से संवैधानिक मूल्यों और अल्पसंख्यक अधिकारों को कमजोर करता है। उदाहरण के तौर पर, केरल के वक्फ बोर्ड ने एर्नाकुलम जिले के मुनंबम तट पर 404 एकड़ भूमि पर दावा किया है, जहां पिछले कई पीढ़ियों से लगभग 600 हिंदू और ईसाई परिवार बसे हुए हैं।
चर्च के सामने पेश किए गए मुद्दे
बैठक में चर्च और अल्पसंख्यकों से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। इनमें मणिपुर में हुई हिंसा, विभिन्न राज्यों में लागू धर्मांतरण विरोधी कानून, ईसाई संस्थानों को FCRA (विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम) की मंजूरी में देरी, दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा न मिलना, और पोप की संभावित भारत यात्रा जैसे विषय शामिल थे। इस बैठक की अध्यक्षता CBCI के अध्यक्ष आर्चबिशप एंड्रयूज थजथ ने की। इसमें केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री और बीजेपी नेता जॉर्ज कुरियन, सीपीआई(एम) सांसद जॉन ब्रिटास, तृणमूल कांग्रेस सांसद डेरेक ओ’ब्रायन, कांग्रेस सांसद हिबी ईडन और डीन कुरियाकोस, तथा ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट पार्टी के सांसद रिचर्ड वानलालह्मांगईह ने हिस्सा लिया। CBCI ने स्पष्ट किया कि यह बैठक पूरी तरह अनौपचारिक थी। उन्होंने इसे “क्रिसमस की भावना और आपसी चर्चा” का अवसर बताया। बैठक के बाद क्रिसमस डिनर का आयोजन किया गया, जिससे एकता और त्योहार का उल्लास झलकता रहा।
चर्च की भूमिका
यह बैठक इसलिए भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि यह कैथोलिक चर्च द्वारा आयोजित पहली बड़ी बैठक थी, जिसमें ईसाई सांसदों को साथ लाया गया। हालांकि, चर्च ने इसे राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संवाद बताया। इस चर्चा ने यह संकेत दिया कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए चर्च और ईसाई सांसद एक मजबूत भूमिका निभाने की ओर बढ़ रहे हैं।