लंदन: लम्बे समय से दुनिया शाकाहारी होने पर जोर दे रही है। कोई क्लाइमेट चेंज तो कोई जानवरो को होने वाली पीड़ा को देखते हुए साग सब्जी खाने को प्रेरित कर रहा है।
इसी कड़ी को जोड़ते हुए इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैकेनिकल इंजिनीर्स द्वारा रिलीज़ की गई रिपोर्ट में चौकाने वाले आंकड़े सामने आये है। संस्था के मुताबिक मीट को अपना निवाला बनाने में एक नहीं दो नहीं आलू से करीब 54 गुना अधिक पानी खर्च होता है।
शोध में जुटाए गए आंकड़ों से इस बात पर बल मिलने लगा है कि शाकाहारी जीवन प्रकृति के लिए कितना लाभदायक है। IME के मुताबिक एक किलो बीफ बनाने में 15 हज़ार लीटर से भी अधिक पानी की बर्बादी होती है। वही बकरे के मीट में 10 हज़ार लीटर से अधिक पानी व्यर्थ हो जाता है। वही बात करे एक किलो आलू की सब्जी पकाने में मात्र 287 लीटर पानी की जरुरत पड़ती है जिसमे न किसी की जान जाती है न पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है।
आगे अगर आपको चिकन मीट खाना हो तो भी एक किलो चिकन आपकी थाली तक पहुंचने में करीब 5 हज़ार लीटर पानी खर्च कर देता है।
आगे एक किलो चावल बनाने में भी करीब 2.5 हज़ार लीटर पानी लग जाता है। वही एक किलो टमाटर पर मात्र 200 लीटर के नजदीक पानी खर्च होता है। एक लीटर दूध में भी टमाटर जितना ही पानी व्यय होता है।
आगे IME ने बताया कि करीब 50 फीसदी खाना हमारी थालियों तक पहुंच ही नहीं पाता। संस्था ने दावा किया है कि करीब 1 से दो बिलियन टन के करीब अन्न किसी न किसी कारण से व्यर्थ हो रहा है जो कुल उत्पादन का आधा है।
आवर वर्ल्ड इन डाटा के अनुसार एक किलो बीफ पकाने में 60 किलो कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है जो शाकाहारी भोजन से कही आगे है। वही सब्जी बनाने में मात्र 400 ग्राम कार्बन निकलती है।
वही बात करे मटन की तो एक किलो मटन पृथ्वी में 24 किलो कार्बन का उत्सर्जन करता है ।आपकी अधिक समझ के लिए यूं समझिये कि अगर आप 1 किलो बीफ खाते है तो आप उसके मुकाबले 520 किलोमीटर अपनी गाड़ी से सफर कर सकते है। 520 किलोमीटर सफर करने से जितना प्रदुषण होता है उतना सिर्फ आप 1 किलो बीफ से कर सकते है।आटा व चावल बनाने में आपको 1.4 किलो कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण पर थोपना पड़ेगा।