भूमिहारो को हैंडपंप से दलित नहीं पीने देते पानी, शव जलाने के लिए खाना बनाने की लकड़ियों को करना पड़ता है इस्तेमाल

हज़ारीबाग़: झारखण्ड की राजधानी से करीब 100 किलोमीटर की दुरी पर स्थित हज़ारीबाग़ में भूमिहारो को पानी पीने से रोका जा रहा है। घटना झारखण्ड के हज़ारीबाग़ स्थित कटकमसांडी पुलिस के अंतर्गत आने वाले पकरार गांव की है जहां दलित बहुल गाँव में मात्र चार घर भूमिहारो के है वहीं करीब 250 घर दलित बिरादरी के है।

गाँव से दूर कर्णाटक में रहकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर रहे सुबोध कुमार गाँव छोड़ कर इसलिए पढ़ने बाहर भेज दिए गए थे क्यूंकि गाँव भूमिहारो के लिए किसी सजा से कम नहीं रह गया है। जानकारी के मुताबिक गाँव के सभी भूमिहार लोगो पर एससी एसटी एक्ट व रेप जैसे गंभीर जुर्म कायम किये गए है। पीड़ितों ने बताया कि सभी परिवारों ने अपने बच्चो को गाँव से दूर भेज दिया है ताकि वह भी किसी फर्जी केस में न फस जाये।

इसी दौरान सुबोध कर्णाटक से लॉक डाउन के दौरान जब घर आये तो उन्होंने देखा कि घर के सामने लगे हैंड पंप से ही उन्हें पीने का पानी नहीं लेने दिया जाता है। सुबोध ने कोशिश करी तो दलितों ने उन्हें मार कर भगा दिया। लेकिन अगले दिन सुबोध ने फिर नलके से पानी लेना चाहा तो करीब 50 से 60 दलितों ने उनके घर पर धावा बोल दिया और कहा तुम भूमिहार इस नल से पानी नहीं पी सकते हो।

गाँव के दलित उनको अकसर धमकाते रहते है जातिसूचक गालियां देकर सड़को से भगा देते है। सुबोध ने कई बार इसे मीडिया में उठाना चाहा लेकिन किसी ने कोई सुध नहीं ली कहा ‘दलित कर रहे है तो दर्द हो रहा है’। तब किसी ने सुबोध को बताया कि डीयू के पत्रकारिता के छात्र ऐसे मुद्दों को लेकर काफी मुखर है तो सुबोध ने घटना की जानकारी हमें मिलकर दी।

सुबोध ने हमें बताया कि गाँव में उनकी बहुत जमीन हुआ करती थी जिसपर कई लोग मजदूरी किया करते थे। लेकिन कुछ वर्षो बाद सभी ने धीरे धीरे हमारी जमीने कब्ज़ा ली। जिसके कागजात भी उसके परिवार के पास मौजूद है लेकिन दलितों ने लाठी डंडो के दम पर उनसे वह जमीन छीन ली। विरोध करने पर सभी को फर्जी एससी एसटी एक्ट व रेप में फसवा दिया। उनसे बात करने जाओ तो महिलाये अपने कपडे फाड़ लेती है व थाने जा मुकदमा करा देती है। इसी क्रम में उनके पिता को फसा दिया गया था। पुलिस भी सब जानते हुए कहती है कि आप लोग ही चुप रहिये सब कानून उनके लिए है।

हद तो जब हो गयी जब दलितों ने उनसे सरकारी हैंडपंप से पानी पीने को लेकर आपत्ति जतानी शुरू कर दी फिर देखते ही देखते जबरन सभी भूमिहारो के पानी पीने पर रोक लगा दी गयी। सुबोध के घर के सामने ही हैंड पंप लगा है लेकिन सुबोध को अब पानी लेने कुएं पर जाना पड़ता है। सुबोध कहते है कि अब खेती बाड़ी न कर पाने व दर्जनों केस लड़कर उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय हो गयी है।

पिता को इसी बीच झूठे हत्या के केस में 6 महीने जेल भी जाना पड़ा था जिसमे 1 साल के भीतर ही कोर्ट ने फर्जी करार देते हुए उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया था। भूमिहार परिवारों की सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। दलितों के प्रकोप के आगे उनकी आबादी व अधिकार चींटी भर ही है। उल्टा एससी एसटी कानून ने उनको पूरी तरह तोड़ कर रख दिया है।

आगे जानकारी करने पर हमें पता चला कि कुछ वर्ष पूर्व एक बुजुर्ग नंदकिशोर सिंह के गुजर जाने पर लकड़ी काटने व देने को लेकर भी दलितों से तनातनी हो गयी थी। दलितों ने लकड़ी लेने से भूमिहारो को जबरन रोक दिया था। जिसके बाद घर में खाना बनाने के लिए रखी लकड़ी को परिजनों द्वारा इस्तेमाल कर शव को जलाया गया था।

यह सब देख प्रशासन भी चुप्पी साधे हुए है। इसके अतिरिक्त दिल्ली में IAS की कोचिंग कर रहे छात्र दुर्गेश सिंह को भी लॉक डाउन के दौरान फर्जी एससी एसटी एक्ट में इसलिए फसाया गया क्यूंकि दलित नहीं चाहते थे कि वह पढाई पर ध्यान दे सके।

पानी पीने से लेकर शव जलाने तक भूमिहारो को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है जिसपर पुलिस प्रशासन भी सब देखते हुए चुप है।

इससे पहले बिहार के जुमई में भूमिहारो को दलितों ने गाँव से खदेड़ दिया था
इस घटना के सामने आने से पहले चिराग पासवान के संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले गाँव लखनपुर में मार्च महीने में महा दलितों ने ब्राह्मण भूमिहारो के घरो में तोड़ फोड़ कर आग लगा दी थी।

जिसके कारण सभी 10 घरो में वास करने वाले ब्राह्मण भूमिहारो को 15 दिन के लिए गाँव छोड़ कर भागना पड़ गया था। पीड़ितों के मुताबिक दलितों ने यह इसलिए किया था ताकि ब्राह्मण भूमिहारो को वह गाँव से खदेड़ सके और उनकी जमीन हड़प लें।

जातिवाद से पूरी तरह त्रस्त इन परिवारों ने कई बार न्याय की गुहार लगाई तो 90 प्रतिशत से अधिक लोगो पर फर्जी एससी एसटी एक्ट थोप दिया गया।

साथ ही इन परिवारों की करीब 70 फीसदी जमीनों पर दलितों ने अपना कब्ज़ा भी जमा लिया हैं जिसका विरोध करने पर दलितों ने कई बार पीड़ितों को लाठी डंडो से पीट भी डाला हैं।

दरअसल पिछडो इलाको ऐसी घटनाओ से पटे पड़े है लेकिन हमारी मीडिया इसको उठाना नहीं चाहता है क्यूंकि इसमें उन्हें टीआरपी इशू है।


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