प्रधानी चुनाव में दलित से मित्रता पड़ी भारी, नाई जाति के सब्जी विक्रेता को 6 साल बाद कोर्ट ने किया बरी

बदायूं: जिले में लगभग 6 वर्ष पुराने मामले में एससी एसटी कोर्ट ने नाई जाति से आने वाले व्यक्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। दरअसल ग्राम केवलपुर तिपेड़ा के रहने वाले ओमप्रकाश पर गाँव के ही जाटव जाति से आने वाले छत्तरपाल ने झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया था। छत्तरपाल ने थाने में दी तहरीर में ओमप्रकाश पर उसके अनुसूचित जाति से आने के कारण उसकी बेटी के कपड़े फाड़ने व नशीला पदार्थ सुंघाकर बेहोश करने का आरोप लगाया था। तहरीर के मुताबिक ओमप्रकाश पर धारा ३५४, ५०६, ३(१)११ एससी-एसटी एक्ट में FIR दर्ज की गई थी।

मामला सामने आते ही पुलिस ने ओमप्रकाश को जेल भेज दिया था। हालाँकि सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि आरोपों व साक्ष्यों में भारी विरोधाभास है। न्यायधीश महेन्द्र सिंह-तृतीय ने अपने निर्णय के दौरान केस में मिली कई गड़बड़ियों पर जोर देकर मुक़दमे पर सवाल खड़े किये।

उन्होंने कहा कि घटना की तिथि व FIR दर्ज कराने में एक महीने का अंतर है। जिसका कोई कारण स्पष्ट नहीं किया गया है। जिससे यह प्रतीत होता है कि नियोजित ढंग से मुक़दमे को दर्ज कराया गया है। साथ ही कोर्ट ने पाया कि अभियुक्त ओमप्रकाश दिल्ली में रहकर सब्जी बेचता है। जिससे यह भी नहीं कहा जा सकता कि उसने अपने धनबल का प्रयोग कर पुलिस अधीक्षक पर दबाव बना दिया जिससे एक माह तक FIR दर्ज नहीं कराई जा सकी। तथ्यों में न तो मेडिकल दाखिल किया गया न ही फटे कपड़े पीड़ित की ओर से दिए गए।

आगे निर्णय में कोर्ट ने कहा कि अपराध के संबंध में कोई प्रामाणिक व विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। अतः उपरोक्त तथ्य एवं परिस्थियों के प्रकाश में ओमप्रकाश को सभी आरोपों से दोष मुक्त किया जाना प्रासंगिक, समीचीन, विधि एवं न्याय हित में ईष्टकर होगा।

प्रधानी की रंजिश में था फसाया
ओमप्रकाश जोकि गाँव वर्ष में एक बार ही आता था उसे गांव में चलने वाली प्रधानी की रंजिश में फसा दिया गया था। ओमप्रकाश जाति से नाई है जिसे उसके दलित मित्र से दोस्ती करना महंगा पड़ गया था। ओमप्रकाश की मित्रता अशोक से थी जोकि अनुसूचित जाति से आता है। प्रधानी के चुनाव में अशोक व छत्तरपाल की रंजिश चल रही थी। वहीं ओमप्रकाश अशोक के लिए प्रचार करता था। जिसके कारण छत्तरपाल ने ओमप्रकाश को मामले में फसा दिया।


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