पटना- बिहार सरकार के आरक्षण बढ़ाए जाने के फैसले को पटना हाईकोर्ट ने गुरूवार को सुनवाई के दौरान रद्द कर दिया है। बता दे कि राज्य सरकार ने शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में एससी एसटी, ओबीसी और ईबीसी के आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया था, जिसके बाद राज्य सरकार के इसी फैसले के चलते याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
याचिकाकर्ता गौरव कुमार व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केवी चंदन की बेंच ने 11 मार्च को सुनवाई पूरी कर फैसला अपने पास सुरक्षित रख लिया था।
आरक्षण सामाजिक और शिक्षा में पिछड़ेपन के आधार पर होना चाहिए, न कि आबादी के आधार पर
राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि एससी एसटी, ओबीसी और ईबीसी को रिजर्वेशन इनकी आबादी के बजाय सामाजिक और शिक्षा में पिछड़ेपन के आधार पर होना चाहिए। याची ने कहा कि बिहार सरकार का फैसला संविधान के अनुच्छेद 16(1) और 15(1) का साफ-साफ उल्लंघन है। याची ने आगे कहा कि अनुच्छेद 16(1) राज्य के तहत किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए समानता का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही अनुच्छेद 15(1) किसी भी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाता है।
बता दे कि जातीय गणना की सर्वे रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद राज्य सरकार ने एससी एसटी, ओबीसी और ईबीसी के आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से बढ़ाते हुए 65 फीसदी कर दिया था। जिसमें आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण को भी मिला लिया जाए तो राज्य में कुल आरक्षण 75 फीसदी तक पहुंच गया था।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 2023 में की थी घोषणा
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 7 नवंबर 2023 को विधानसभा में इसकी घोषणा की थी कि सरकार जल्द ही बिहार में आरक्षण के दायरे को बढ़ाएगी। वहीं मुख्यमंत्री की घोषणा के तुरंत बाद केबिनेट की मीटिंग बुलाई गई थी और कुछ ही घंटों में कैबिनेट ने इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। साथ ही शीतकालीन सत्र के चौथे दिन 9 नवंबर को विधानमंडल के दोनों सदनों में भी प्रस्ताव को पारित कर दिया गया।
Kapil reports for Neo Politico Hindi.