IIT कानपुर ने भगवान शिव के डमरू से प्रेरित तकनीक बनाई जिससे बन सकती है अदृश्य पनडुब्बी

कानपुर: भगवान शिव के डमरू और मधुमक्खियों के छत्ते की आकृति और आकार से प्रेरणा लेते हुए IIT कानपुर के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी बिल्डिंग ब्लॉक तैयार की है जो ध्वनि तरंगों को रोक सकती है।

इसका इस्तेमाल दुश्मनों की नजरों से अपनी पनडुब्बियों को बचाने में, हाई स्पीड ट्रेन में और शरीर में होने वाले परिवर्तनों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है।

शिक्षा मंत्रालय की एक परियोजना:

यह कार्य एमएचआरडी की एक स्पार्क परियोजना द्वारा प्रायोजित है और आईआईटी कानपुर के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर विशाख भट्टाचार्य और उनके पीएचडी छात्र विवेक गुप्ता और ब्रिटिश विश्वविद्यालय स्वानसी के प्रोफेसर अनुदीपन अधिकारी के बीच एक सफल सहयोग का परिणाम है। यह कार्य 1 दिसंबर, 2020 को वैज्ञानिक रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है “प्रति घंटा के आकार के जाली मेट्रोसट्रक्चर की गतिशीलता की खोज।”

आईआईटी कानपुर ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा, उनके द्वारा विकसित जाली की प्रेरणा डमरू से आई है जिसका उपयोग प्राचीन हिंदू धर्म और तिब्बती बौद्ध धर्म में किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने ब्रह्मांड को विनियमित करने के लिए इस संगीत वाद्ययंत्र के माध्यम से एक विशेष ध्वनि उत्पन्न की थी।

दिलचस्प बात यह है कि इस तकनीक में, आईआईटी कानपुर के शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि नियमित रूप से छत्ते से लेकर छत्ते की छत्ते की संरचना तक जाली सूक्ष्म संरचना को नियंत्रित करके एक वाइब्रेटिंग माध्यम की कठोरता की प्रकृति में भारी बदलाव किया जा सकता है।

हिंदी दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों ने डमरू के सिद्धांत से ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे दुश्मनों को चकमा देने वाले स्टेल्थ (अदृश्य) हेलीकॉप्टर व पनडुब्बी बनाई जा सकती है। इससे भविष्य में सुपर लूप ट्रेन के संचालन का रास्ता भी साफ होगा। यह तकनीक शरीर के छोटे से ट्यूमर को खोजने में भी कारगर रहेगी। इस तकनीक को मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

यहां के विशेषज्ञों ने फोनोनिक मैटेरियल्स की मदद से मधुमक्खी के छत्ते के आकार की संरचना की और इसे डमरू के आकार में तैयार किया। इसकी टेस्टिंग में चौंकाने वाले परिणाम मिले। इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और अल्ट्रासोनिक वेव को इसने अवशोषित कर लिया। मैकेनिकल विभाग के प्रो. बिशाख भट्टाचार्या और उनकी टीम को यह कामयाबी मिली है। उन्होंने इस आकार को बिल्डिंग ब्लॉक का नाम दिया है। उन्होंने बताया कि उन्हें  इस तकनीक को विकसित करने की प्रेरणा डमरू से मिली है। भगवान शंकर ने दो सिरे वाले डमरू से ब्रह्मांड को विनियमित करने के लिए एक विशेष ध्वनि उत्पन्न की थी। इसका ही उपयोग किया गया।

हाइपर लूप की फ्रीक्वेंसी रोकेगी

इस तकनीक से हाईपर लूप या बुलेट ट्रेन की फ्रीक्वेंसी को रोकने में मदद मिलेगी, जिससे ब्रिज या रास्ते में आने वाले भवन सुरक्षित रह सकेंगे। हाइपर लूप और बुलेट ट्रेन के चलने से तेज आवाज निकलती है, जो पुरानी इमारतों के लिए नुकसानदायक है। इस तकनीक से तेज आवाज को अवशोषित किया जा सकेगा।

यह होता है फोनोनिक मैटेरियल  

फोनोनिक मैटेरियल्स कंपोजिट मैटेरियल्स से बने होते हैं। इसको विशेष तरह से डिजाइन किया जाता है, जिसमें एक ही ध्वनि का कई तरह से बिखराव होता है। कंपोजिट मैटेरियल दो अलग अलग तरह के केमिकल और फिजिकल प्रॉपर्टी वाले मैटेरियल से बनते हैं। इनकी प्रॉपर्टी बिलकुल बदल जाती है, जबकि करंट का असर नहीं पड़ता है।

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