I4K कॉन्क्लेव में अग्निहोत्री: ‘अफगानी समस्या पे काबुल एक्सप्रेस मूवी, कश्मीरी पंडितों पे हिम्मत क्यों नहीं ?’

पुणे : बालीवुड कलाकार विवेक अग्निहोत्री नें फ़िल्म निर्माताओं से कश्मीरी पंडितों पर कोई भी दिलचस्पी न दिखाने पर तीखा हमला बोलते हुए पूछा कि ‘अफगानिस्तान की समस्या पर फ़िल्म काबुल एक्सप्रेस बन सकती है पर कश्मीरी पंडितों पर क्यों नहीं ?’

बीते 29 जून को पुणे में ‘ग्लोबल थिंक टैंक कॉन्क्लेव’ 2019 का आयोजन किया गया जिसमें कश्मीरी हिंदुओं के लिए काम करने वाली संस्था ‘इंडिया फ़ॉर कश्मीर’ नें देश के एक मात्र अनछुए मुद्दे पर बेहतरीन चर्चा आयोजित की जिसमें विषय रखा गया था “कश्मीरी हिंदू अपने ही देश में शरणार्थी” | इसमें कई कलाकार जगत की कई जानीमानी हस्तियों नें हिस्सा लिया |

इस बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर विवेक अग्निहोत्री, अशोक पंडित, शेफ़ वैद्या, रीतू राठौर, मीनाक्षी श्री शरण, राठी हेडगे व विभोर आनंद नें भारत की आजादी के बाद की सबसे बड़ी मानव त्रासदी पर कई राजनीति जगत से लेकर कला, साहित्य जगत से अहम सवाल उठाए |

बालीवुड कलाकार विवेक रंजन अग्निहोत्री ने फिल्म, कला, साहित्य के साथ ही साथ राजनीति जगत से चुभते सवाल किया और पूछा कि भारत की सबसे बड़ी मानव त्रासदी कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार की बात क्यों नहीं ? उन्होंने बताया कि एक बार वो कश्मीर यूनिवर्सिटी में पेड़ की पिक्चर लेते समय उन्हें रोक दिया गया ऐसा क्यों हमारे ही पेड़ की हम पिक्चर नहीं ले सकते ऐसा क्यों ?
“अमेरिका में जीयुस की स्टोरी पर हॉलीवुड में सबसे अधिक फिल्म बनाई गई और उन्हें सबसे अधिक इन्ही फिल्म में सक्सेस भी मिली | कश्मीरी पंडितों के रहने के लिए कैम्प के अलावा कोई स्थान नहीं ऐसा क्यों ? पॉलिटिक्स में हीरो को बहुत देखा क्या तिलक लगाकर मंदिर जाने वाले, टोपी पहनकर रोजा करने वाले नेताओं ने कभी इस विषय पर बात की ? ईश्वर तो वहां है जहां सामर्थ्य नहीं है |”
“भोपाल गैस त्रासदी में एक बच्चे की तस्वीर दुनिया को दिखाने को काफी है, बाबरी मस्जिद में ऊपर चढ़े लोगों को दिखाने के लिए इस्लामिक ग्रुप के लिए यह दिखाने के लिए ये तस्वीर काफी होती है | काशी विश्वनाथ मंदिर के पीछे बनी मस्जिद की इमेजनरी काफी होती है ? लेकिन कश्मीरी पंडितों पे हुई ज्यादतियों को दिखाने के लिए कोई भी इमेज नहीं है ऐसा क्यों ? मीडिया में ना कोई विशेष लेख ऐसा क्यों होता है ? अफगानिस्तान की समस्या पर काबुल एक्सप्रेस फिल्म बन गई लेकिन भारत की इतनी बड़ी त्रासदी पर बॉलीवुड खामोश क्यों रहे, हिम्मत क्यों नहीं ?”
“इन सबको हल करने के लिए हमको नए विचार, कला, साहित्य जगत रचनात्मक तरीके से इसे पूरी दुनिया को दिखाना होगा | यदि ऐसी कोई फिल्म को छोटा बच्चा भी देखे तो उसका रूह कांप उठे और उसको पता चले कि आखिर इतनी बड़ी त्रासदी पर हम चुप क्यों बैठे रहे और ऐसा कैसे हो गया ?”
“आपको पता होगा, एक बहुत दर्दनाक घटना बताई जाती है कि चावल के बर्तन में बच्चे बच्चे को गोली से भून दिया गया था और उस चावल को उसकी मां को खिलाया गया था, आपने सुनी होगी | हमको ऐसी चीजों को सबके सामने लाना होगा |”
“हम अपनी सांस्कृतिक सीमा को कम किए जा रहे हैं हम जहां कंबोडिया फिजी तक थे आज हम केवल भारत की सीमाओं तक ही सीमित हो रहे हैं | एक बार मैंने ड्राइवर से पूछा कि तुम बढ़िया जूता कहां से लाए उसने जवाब दिया विदेश से, मैंने सोचा उसकी औकात कितनी होगी, ज्यादा से ज्यादा बैंकॉक | उसने जवाब दिया, नहीं, मैंने जूते दिल्ली से खरीदें हैं |”
“यह जरूरी नहीं कि न्याय कोर्ट में मिले और इसके अलावा भी कहीं मिल सकता है | हमारे दिल में कुछ नेताओं के लिए बहुत इज्जत थी लेकिन अब जब से मैंने इन चीजों को जाना समझा है उनके लिए इज्जत बिल्कुल खत्म होती जा रही है | सोचिए आज यह हालत है ये है कि किसी यूनिवर्सिटी में कोई बच्चा अगर हाथ उठा दे कि मैं कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों के बारे में जानता हूं यह बहुत बड़ी बात होगी, बमुश्किल एक दो जो राजनैतिक रूप से जागरूक हैं |”

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