भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ऐतिहासिक यात्रा पर जा रहे हैं। वे 11 जून 2025 को SpaceX के Falcon 9 रॉकेट से Axiom Mission 4 (Ax-4) के तहत उड़ान भरेंगे। इस मिशन के साथ वे राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष जाने वाले दूसरे भारतीय बनेंगे। लेकिन इस बार मिशन में सिर्फ विज्ञान ही नहीं, भारत की संस्कृति, खाना और योग भी अंतरिक्ष में पहुंचेगा। शुक्ला अपने साथ भारतीय व्यंजन, पारिवारिक यादें, सांस्कृतिक प्रतीक और ISRO के वैज्ञानिक प्रयोग भी ले जा रहे हैं।
अंतरिक्ष में स्क्रीन के लंबे इस्तेमाल का दिमाग पर असर: मानसिक स्वास्थ्य की खोज
अंतरिक्ष यात्री अपनी अधिकतर समय डिजिटल स्क्रीन जैसे कंप्यूटर, मॉनिटर और कंट्रोल पैनल को देखने में बिताते हैं। इस लगातार स्क्रीन देखने का उनके दिमाग, आंखों और मानसिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जानने के लिए शुभांशु शुक्ला खास प्रयोग करेंगे। इस प्रयोग में यह समझा जाएगा कि क्या स्क्रीन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अंतरिक्ष यात्रियों को थकान, एकाग्रता की कमी, सिरदर्द या मानसिक दबाव जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इस रिसर्च का सीधा फायदा भविष्य की लंबी अंतरिक्ष यात्राओं में होगा, जहां यात्री महीनों या सालों तक स्पेसक्राफ्ट में रहने वाले होंगे। इस अध्ययन से स्क्रीन टाइम को बेहतर तरीके से मैनेज करने और मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के उपाय विकसित किए जा सकेंगे।
अंतरिक्ष में सूक्ष्म जीवों का व्यवहार: बैक्टीरिया और वायरस की ताकत जानने का प्रयास
अंतरिक्ष में पृथ्वी की तुलना में वातावरण पूरी तरह अलग होता है। गुरुत्वाकर्षण न के बराबर होने की वजह से यह पता लगाना जरूरी हो जाता है कि सूक्ष्म जीव (बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि) अंतरिक्ष में किस तरह व्यवहार करते हैं।
शुभांशु इस प्रयोग के जरिए जानेंगे कि क्या ये जीव अंतरिक्ष में ज्यादा खतरनाक बन जाते हैं या उनका प्रभाव कम हो जाता है।
अगर सूक्ष्म जीव अंतरिक्ष में ज्यादा तेजी से फैलते हैं, तो यह अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। इस प्रयोग से अंतरिक्ष यानों की सफाई, रोग नियंत्रण और सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में मदद मिलेगी।
मांसपेशियों की कमजोरी का अध्ययन: गुरुत्वाकर्षण की कमी में शरीर की ताकत बचाने की कोशिश
अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण नहीं होने की वजह से अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं, जिसे मसल एट्रोफी (Muscle Atrophy) कहा जाता है। शुभांशु इस प्रयोग से यह जानने की कोशिश करेंगे कि मांसपेशियां अंतरिक्ष में कितनी तेजी से कमजोर होती हैं, इसका शरीर पर क्या असर होता है, और इसे कैसे रोका जा सकता है। अगर इस समस्या का समाधान मिल जाता है तो भविष्य में महीनों या सालों तक चलने वाले अंतरिक्ष मिशनों में यात्रियों की सेहत बनाए रखना आसान हो जाएगा। इस रिसर्च से अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खास योग, व्यायाम और पोषण संबंधी उपाय तैयार किए जा सकते हैं।
अंतरिक्ष में खेती की संभावना: क्या माइक्रोग्रैविटी में अनाज उगाना संभव है?
अंतरिक्ष में लंबी यात्रा के दौरान ताजा भोजन की जरूरत सबसे बड़ी चुनौती होती है। इसी समस्या को हल करने के लिए शुभांशु शुक्ला यह प्रयोग करने जा रहे हैं कि क्या अंतरिक्ष की भारहीन स्थिति में अनाज, फल या सब्जियां उगाई जा सकती हैं। इस रिसर्च में यह पता लगाया जाएगा कि कौन-सी फसलें माइक्रोग्रैविटी में टिक सकती हैं, तेजी से बढ़ सकती हैं और अंतरिक्ष में वातावरण के अनुसार खुद को ढाल सकती हैं। अगर इस प्रयोग में सफलता मिलती है तो भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को ताजा खाना वहीं उगाने की सुविधा मिलेगी, जिससे लंबे समय तक चलने वाली अंतरिक्ष यात्राएं ज्यादा सुरक्षित और आरामदायक हो सकेंगी।