10 सालों तक फ़िर आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव पास, नोबेल विजेता बता चुके हैं पॉलिटिकल गेम !

नईदिल्ली : मोदी कैबिनेट नें अगले 10 सालों के लिए आरक्षण बढ़ाने का प्रस्ताव पास कर दिया, जिसको लेकर नोबेल विजेता भी सवाल उठा चुके हैं !

केंद्र की मोदी मंत्रिमंडल ने बुधवार को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC और ST के आरक्षण को 10 साल के लिए बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

Modi Cabinet

लोकसभा और विधानसभाओं में इन श्रेणियों के लिए आरक्षण 25 जनवरी, 2020 को समाप्त होना था। रिपोर्ट के अनुसार सरकार इस सत्र में फ़िर से आरक्षण बढ़ाने को 10 सालों के लिए बढ़ाने को एक विधेयक लाएगी।

जबकि विधायिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से किया जाता है, इन श्रेणियों के लिए नौकरियों में समान आरक्षण संबंधित राज्य सरकारों द्वारा तय किया जाता है।

हालांकि इस आरक्षण पर किसी भी सवाल जबाव की बातें नहीं आई हैं यानी आज़ादी के बाद से स्थिति जो थी आरक्षण की उसी को आगे बढ़ाया है।

हालांकि इस व्यवस्था का पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन नें पुरजोर विरोध करते हुए कहा था कि “हमनें सामाजिक न्याय का आत्मचिंतन किए बिना बस 10-10 सालों तक आरक्षण बढ़ाया है। क्या यही आरक्षण की कल्पना थी ? अम्बेडकर ख़ुद 10 सालों तक के आरक्षण के पक्षधर थे।”

इसके अलावा दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार नोबेल जीतने वाले भारतीय मूल के अभिनीत बनर्जी नें अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड को दिए एक इंटरव्यू में भारत की आरक्षण व्यवस्था पर सवाल खड़े किए थे।

Nobel Winner Abhijeet Banerjee

अभिजीत नें कहा था “आरक्षण की नीतियों के बारे में बुरी बात यह है कि कोटा के लिए लड़ने की एक धुन या सनक सी है जिसमें आदमी एक ही चीज के बारे में सोचता रहता है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था है वो हमेशा आरक्षण का खेल खेल रही है | लेकिन हमें जो करना चाहिए वह जो आरक्षण में होने की आकांक्षा न हो |

आगे उन्होंने कहा था “यदि आरक्षण के बजाय इनकी मांग क्यों नहीं करते हैं हम ? क्योंकि लोग सोचते हैं कि सरकारी नौकरी पाने से हमे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।”

Abhijeet Banerjee

“सरकारी नौकरी ज्यादा पैसा, निचले पदों पर कम से कम, यदि उच्च स्तर पर नहीं हुआ तो। भारत में यह बहुत ही आकर्षक है। उदाहरण के लिए, हमारे सरकारी शिक्षकों को जीडीपी के सापेक्ष बहुत अधिक भुगतान मिलता है जबकि विकसित राष्ट्रों में ऐसा नहीं होता ।”

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