नई दिल्ली : दलितों व आदिवासियों को लेकर दिन भर छाती पीटने वाले कथाकथित दलित नेताओं के सबसे मशहूर व चिंता दायक दावे को लेकर आज हमने एक रिपोर्ट तैयार करी है। इस रिपोर्ट में दलित नेता चंद्रशेखर आज़ाद, दलित चिंतक दिलीप मंडल व पूर्व दलित सांसद उदित राज के उन गंभीर दावों को लेकर जांच पड़ताल करी गई है जिसमे वह हमेशा से दलितों पर अन्य वर्गो से अधिक होने वाले अत्याचारों का बखान करते मिल जाते है।
पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इक्वलिटी लैब्स के एक कार्यक्रम में ऐसे ही एक वाकये में चंद्रशेखर आज़ाद ने अपने स्वरचित आंकड़े बता कर सबकी आँखों में आंसू ला दिए थे कि भारत में सबसे अधिक अगर किसी को मारा पीटा व प्रताड़ित किया जा रहा है तो वह दलित है। साथ ही इस रिपोर्ट से हमारा कतई यह मतलब नहीं है कि हम दलित के अत्याचारों को कम कर बताने का प्रयास कर रहे है बल्कि भारत में कैसे सवर्णो व दलितों को आपस में लड़ाने का खेल खेला जा रहा है उसका एक खाका पेश कर रहे है ।
दलितों पर हो रहे अत्याचार अपने आप में निंदनीय है वहीं सिर्फ दलित ही नहीं किसी भी वर्ग पर हो रहे अत्याचार प्रंशसनीय योग्य नहीं है परन्तु सिर्फ एक वर्ग के अत्याचार को अत्याचार दिखाना और दूसरे को डकार जाना यह भारत में लम्बे समय से चला आ रहा है।
इस रिपोर्ट को बनाने के लिए हमने NCRB के आंकड़ों को आधार बनाया है वहीं NCRB के सबसे लेटेस्ट डाटा को इसके लिए हमने प्रयोग में लिया है।
NCRB 2018 की रिपोर्ट कुल दो वॉल्यूम में प्रकाशित हुई है जिसमे अलग से अनुसूचित जाति व जनजाति पर होने वाले अत्याचारों पर भी प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट में विभिन्न प्रकार के अपराधों को शामिल किया है जिसमे चोरी, छेड़छाड़, बुजर्गो के प्रति अत्याचार, दहेज़ से लेकर हत्या तक को शामिल किया गया है।
हमने इस रिपोर्ट में सिर्फ हत्याओं को आधार बनाया है। जिसमे भारत में वर्ष 2018 में हुई कुल हत्या के मुकाबले दलितों व आदिवासियों की हुई कुल हत्याओं को खंगाल कर विश्लेषण किया गया है।
छपी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2017 में कुल 28653 लोगो की हत्या की गई थी जोकि अगले वर्ष बढ़ कर 29017 हो गई है। इसमें सभी वर्गो के लोग शामिल है।
वहीं अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगो की हुई हत्या वर्ष 2018 में दलित नेताओं के दावों से कोसो दूर निकली। कुल हुई हत्याओं में अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगो का प्रतिशत महज 2 प्रतिशत के करीब ही रहा है। साथ ही अन्य वर्ग जिसमे ओबीसी व सवर्ण शामिल है उनका कुल प्रतिशत 98 फीसदी है। डाटा के मुताबिक वर्ष 2018 में दलितों व आदिवासियों के 798 लोगो की हत्या की गई थी जो कुल की गई हत्याओं का महज 2 फीसदी ही है।
वहीं दलित उत्पीड़न में उत्तर प्रदेश अव्वल रहा है लेकिन इस हिसाब से सभी लोगो के उत्पीड़न में भी यूपी ही आगे रहा है। यक़ीनन किसी भी वर्ग को चिन्हित कर हम उसके उत्पीड़न को दूसरे से कम या अधिक नहीं बता सकते है। वहीं जिस प्रकार से कुछ दलित नेता अपनी दुकान चलाने के मकसद से ऐसा करते है उन्हें इन आंकड़ों को भी लोगो के समक्ष रखना चाहिए।
29 में से 11 राज्यों में नहीं हुई एक भी दलित की हत्या
कुल 29 राज्यों में से 11 राज्य ऐसे भी रहे है जहां दलित व आदिवासियों के हत्या का एक भी मामला सामने नहीं आया है। इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, जम्मू कश्मीर( राज्य 2018 के मुताबिक), सिक्किम जैसे अन्य राज्य शामिल है। वहीं 6 केंद्र शाषित प्रदेशों जिसमे अंडमान निकोबार, पुड्डुचेर्री, व लक्षद्वीप भी शामिल है।
ऐसे में जब दलितों के हत्या के मामले उनकी आबादी के प्रतिशत व अन्य वर्गों के मुकाबले बेहद न्यूनतम स्तर के रहे है तो वहीं दलित नेता अपराधों को जाति देख कर ही उठाते आये है।
मामले उठाने में भी फ़िल्टर लगाया जाता है, अपराधी बतौर मिश्रा, शर्मा, तिवारी, ठाकुर व बनिया भी होना अनिवार्य है अगर दलित की हत्या दलित ने ही की है तो उसको उठाने पर इनका फ़ोन हैंग कर जाता है।
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